Monday, 8 September 2014

8) मानव शरीर की मृत्यु और जन्म

सृष्टि चक्र में मानव शरीर आत्मा को सात बार प्राप्त होता है| पूर्ण जीवन भर की यादों को मानव बिंदु स्वरूप मानव मन में ही भरता है| मन के उलटे भाग में उलटे, बुरे और पाप कर्मों की यादों को और मन के सीधे भाग में अच्छे, सीधे और पुण्य कर्मों की यादों को भरता है| कलयुग के समय में मानव मन से निर्बल होने के कारण और बुद्धि के उलटे भाग का इस्तेमाल अधिक करने के कारण मन के उलटे हिस्से को अल्पआयु में भर लेता है| मन में इन यादों का भारीपन अधिक हो जाता है| जिस के कारण मन मस्तिष्क से हटकर हृदय में जाकर आत्मा से मिल जाता है| मन के अपने स्थान से हटते ही पूर्ण शरीर में उर्जा का बहाव बंद हो जाता है और मानव शरीर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है| इस के पश्‍चात मन द्वारा संपन्न किये गये कर्मों की यादों के आधार पर परमात्मा का अंश आत्मा और मन को शरीर से निकालना शुरू करता है| मानव शरीर में ग्यारह द्वार होते हैं, कौन से द्वार से आत्मा और मन को निकाला जाएगा और कितने समय में निकाला जाएगा| यह सारा हिसाब किताब मन द्वारा संपन्न किये गए कर्मों पर ही आधारित होता है| निकलते समय जलन की पीड़ा शरीर महसूस करता है| आत्मा और मन के जब सातों जन्म मानव शरीर के रूप में पूरे हो जाते हैं तो उस के पश्‍चात ही सारे जन्मों में किए गए पाप कर्मों का फल भोगने हेतु आत्मा को प्रेत योनी प्राप्त होती है जिस के पश्‍चात फिर से आत्मा को २५०० वर्ष का यह सृष्टि चक्र पार करना पड़ता है; मानव शरीर धारण करने हेतु|

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