कल्याणकारक और विनाशकारक कर्मों में अंतर
कलयुग का मानव मन हावी कर लेता है बुद्धि पर शरीर से कर्म लेता है अथवा बुद्धि हावी कर लेता है मन पर शरीर से कर्म कर लेता है| मानव शरीर अपने जीवन में ६ प्रकार के कर्म कर पाता है| १- उल्टी बुद्धि की सोच द्वारा उल्टे कर्म करता है जिन कर्मों का फल शरीर रोगी बनकर भोगता है| २- सीधी बुद्धि की सोच द्वारा सीधे कर्म करता है जिन कर्मों का फल शरीर निरोगी बनकर भोगता है| ३- निर्बल मन की समझ द्वारा किये गये बुरे कर्मों का फल शरीर दुःख के रूप में भोगता है| ४- प्रबल मन की समझ द्वारा किये गये अच्छे कर्मों का फल शरीर सुःख के रूप में भोगता है| ५- ग्यारह रुद्रों के आवेश में आकर सृष्टि विनाश के पाप कर्मों का फल आत्मा को प्रेत योनी में जाकर भोगना पड़ता है| ६- शरीर में समाहित रुद्रों पर विजय प्राप्त कर शरीर सृष्टि कल्याण के पुण्य कर्म करता है जिनके फल स्वरूप आत्मा को सृष्टि चक्र से मोक्ष की प्राप्ति होती है| मिानव शरीर में अपान, प्राण, समान, उदान, व्यान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त, धनंजय, दशवायु तथा जीवात्मा यही ग्यारह विनाशकारी रुद्र होते हैं जो सृष्टि विनाश का पाप कर्म मानव शरीर से कराते हैं
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