Monday, 8 September 2014

अमृत सिद्धि(मणिपुर चक्र विभेदनं):

मणिपुर चक्र को योग, साधना, तंत्र सिद्धि, प्रत्यक्षिकरण, देह सिद्धि, पद्मासन सिद्धि, खेचरत्व पद प्राप्ति,सूक्ष्म शरीर जागरण व विचरण एवं और भी बहुत सारी उपलब्धियों की प्राप्ति में सर्वोपरि स्थान प्राप्त है। इस चक्र के जागरण या भेदन के पश्चात् शरीर पूर्ण रूपेण सिद्ध हो जाता है। क्षुधा कम लगती है यानि के आप को अत्यंत ही अल्प आहार की आवश्यकता होती है। प्राण शक्ति का यही उद्गम बिन्दु है। अत: इस चक्र के भेदन के पश्चात आप कोई भी साधना कर लें सिद्धि सुनिश्चित रूप से प्रथम बार में ही साधक के गले में वरमाला डालने को बाध्य हो जाती है। ऐसा शास्त्रों में उल्लिखित है। सदगुरुदेव ने इस स्तोत्र का उल्लेख अपनी एक पुस्तक में रोग मुक्ति के संदर्भ में किया है। जिसमें साधक को इस स्तोत्र के नित्य 108 पाठ 21 दिनों तक भगवान शिव के समक्ष उनकी सुविधानुसार पूजन कर करना चाहिए। हवन आदि की आवश्यकता नहीं है। बाकि उपरोक्त वर्णित लाभों में से कुछ तो फलश्रुति में वर्णित हैं और बाकि योग ग्रंथों में। इस स्तोत्र को मैं फलश्रुति के साथ दे रहा हूं। पहला पाठ फलश्रुति के साथ करें। बीच के सभी पाठ में मूल स्तोत्र का ही पाठ करें और पुन: अंतिम पाठ फलश्रुति के साथ करें। कोशिश करें यदि आप एक मूल पाठ एक श्वास में कर पाएं तो या फिर दो सांस में करें। 2—3 दिनों के अभ्यास से ही ये संभव हो जाएगा। गहरी श्वास लें और पाठ प्रारंभ करें। 1 या 2 श्वास में मूल पाठ को संपन्न करें। श्वास का नियम फलश्रुति के लिए नहीं है। पहले गुरु, गणेश, गौरी और भैरव का पूजन कर लें। सदगुरुदेव से आज्ञा लेकर इस साधना में प्रवृत्त हों।
यदि आपके पास शिवलिंग या महामृत्युजय यंत्र हो तो उसका पूजन करें या भगवान श्री निखिल या श्रीशिव के चित्र के सामने भी कर सकते हैं। रोग की गंभीरता को देखता हुए आप पाठ की संख्या में वृद्धि कर लें। और उपरोक्त वर्णित लाभों की प्राप्ति के लिए इस स्तोत्र को नित्य 1100 बार जिसमें आपको कुल 5—6 घंटे लगेंगे, करें। इसमें समय सीमा का उल्लेख नहीं है परंतु साधक को स्वत: ही पता चलने लगता है कि उसे किन किन उपलब्धियों की प्राप्ति हो रही है और कितने समय में उसे पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो सकती है। इसमें शब्दों का उच्चारण शुद्ध करें। क्योंकि मणिपूर का विभेदन इस स्तोत्र के ध्वनि विज्ञान पर आधारित है।

मणिपूर विभेदकम् स्तोत्रम्
मूल पाठ: 
ऊँ नम: परमकल्याण नमस्ते विश्वभावन।
नमस्ते पार्वतीनाथ उमाकान्त नमोस्तुते।।
विश्वात्मने अविचिन्त्याय गुणाय निर्गुणाय च।
धर्माय अज्ञानभक्षाय नमस्ते सर्वयोगिने।
नमस्ते कालरूपाय त्रैलोक्यरक्षणाय च।।
गोलोकघातकायैव चण्डेशाय नमोस्तुते।
सद्योजाताय नमस्ते शूलधारिणे।।
कालान्ताय च कान्ताय चैतन्याय नमो नम:।
कुलात्मकाय कौलाय चंद्रशेखर ते नम:।।
उमानाथ नमस्तुभ्यम् योगीन्द्राय नमो नम:।
सर्वाय सर्वपूज्याय ध्यानस्थाय गुणात्मने।
पार्वती प्राणनाथाय नमस्ते परमात्मने।।
फलश्रुति:
एतत् स्तोत्रं पठित्वा तु स्तौति य: परमेश्वरं।
याति रुद्रकुलस्थानं मणिपूरं विभिद्यते।।
एतत् स्तोत्रं प्रपाठेन तुष्टो भवति शंकर:।
खेचरत्व पदं नित्यं ददाति परमेश्वर:।

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