Tuesday, 5 August 2014

माँ उमिया की उत्पत्ति - प्रथम अवतार
सृष्टि की रचना के लिए शिवतत्व ने सती को प्रगट किया। सती ने दक्ष प्रजापति के घर में जन्म लिया। उनकी शादी भगवान शिव के
साथ हुई। दक्ष को अपने दामाद शिव के प्रति अरूचि होने के कारण उन्होंने एक यज्ञ किया जिसमें शिव को निमंत्रण नहीं दिया।
सती अपने पिता के घर यज्ञ में बगैर निमंत्रण के ही चली हई। वहाँ पर भगवान शिव का अपमान देख कर उनसे यह बर्दाष्त नहीं हुआ और सती यज्ञकुंड में कूद गई और स्वयं को होम कर दिया। इस घटना से भगवान शिव काफी क्रोधित हुए और सती के शव को कंधे पर लेकर तांडव करने लगे। चारो और हाहाकार मच गया। सृष्टि को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के इकावन टुकड़े कर
दिए। वह टुकडा जहाँ जहाँ गिरा वहाँ शक्तिपीठ बना।
माँ उमिया उत्पत्ति – द्वितिय अवतार सती ने स्वयं को अग्निकुंड में डालने से पहले यह
कामना की थी कि दूसरे अवतार में भी भगवान शिव ही उन्हें पति के रूप में मिले। सती के जानेके बाद शिव बैरागी बन गए। सृष्टि पर तारकासुर का आतंक काफी बढ़ गया था। उसने ब्रह्माजी के यह वरदान लिया था कि केवल भगवान शिव के पुत्र हाथों ही उसकी मौत हो। देवों ने भगवान शिव को सभी के हित में दूसरी शादी करने के लिए तैयार किया।हिमालय और मैना के घर में सती ने दूसरा अवतार लिया और पार्वती उमा के रूप में जानी गई।उन्होंने कठिन तप किया और किया और शिव के साथ शादी हुई। उनके पुत्र कार्तिक के हाथो तारकासुर का वध हुआ।
माँ उमियाद्वारा पाटीदारों की उत्पत्ति –
कुलदेवी माँ उमिया भगवान शिव राक्षस को मारने उमा के साथ गए। सरस्वती के किनारे उन्होंने उमा को उतारा। वहाँ उमा ने मिट्टी के 52 पुतले बनाए। भगवान शिव वहाँ आकर उन पुतलों में जीवन दिया जो कडवा पाटीदार के 52 शाखाओं के आदिपरुष हुए।
मां उमिया कडवा पाटीदार की कुलदेवी बनी।उनको सुखी, समृद्ध और आबाद होने
का तथा जब उन्हें याद करने पर सहायता करने का आशिर्वाद दिया। भगवान शिव ने उमापुर में उमा की स्थापना की। अखंड रूप में माँ उमिया मा उमिया के शरीर के भागों में से 52 शक्ति पीठ बना जबकि उंझा में दूसरे
अवतार की स्थापना भगवान शिव ने की जो उनका अखंड स्वरूप है। शरीर के भागका कोई शक्तिपीठ नहीं है।
जिनकी आराधना से सबकी मनोकामना पूरी होती है।जिनकी आराधना से सबकी मनोकामना पूरी होती है।
दूसरी पौराणिक कथा – पाटीदार लव कुश के संतान सीताजी माँ उमिया गौरी की पूजा करती थी जनक के बागीचे में रामचंद्रजी के साथ प्रथम मिलन के बाद उन्हें अपना पति के रूप में पाने की सीताजी की कामना माँ उमा के आशिर्वाद से पूर्ण हुई। जब वे धरती में प्रविष्ट की, उस समय उन्होंने लव कुश
को माता उमा को सौंपा था। तब से वे
माँ उमिया की पूजा करते आए है। उनके वंशज भी माँ उमिया की पूजा करते आए है।
सीता माता भी जनक विदेही को खेत में हल
जोतते हुए मिली थी। जनक प्रथम किसान के रूप में जाने जाते है। पाटीदार भी खेती के काम के साथ जुड़े हुए है। माँ उमिया का वाहन भी नंदी है जो खेती का मूल आधार है। इस तरह पाटीदार रामचंद्र सीताजी लव कुश के साथ रिश्ता पता चलता है। पाटीदार क्षत्रिय थे तथा उनकी कुलदेवी भी माँ उमिया ही है। ऐतिहासिक संदर्भ में पाटीदारों की उत्पत्ति पाटीदार आर्य है। वे मध्य एशिया से पंजाब आए।वहाँ से बेहतर जमीन पानी देख कर विभिन्न स्थानों में चले गए। पंजाब में युद्धो से परेशन होकर राजस्थान होकर गुजरात में बसे। दूसरी और गंगा यमुना के मैदानों दे द्वारा यू.पी., बिहार,नेपाल तक गए। कुझ मध्यप्रदेश से महाराष्ट्र होते हुए तमिलनाडु तक फैले। गुजरात में जमीन रखने वाले पाटीदार बने। गायकवाडी में खेती का पट रखने वाले को पटेल का पदवी मिला। यूपी में कुर्मि क्षत्रिय के रूप में पहचाने जाने वाली यह जाति कुर्मी में से कुलभी – कुनबी – कणबी हुए।
यह जाति क्षत्रिय में से खेती पशुपालन करने
वाले पाटीदार और बाद में पटेल बने। वे जहाँ गए वहाँ माँ उमिया की पूजा करते रहे। पंजाब से आने के कारण पंजाब के गाँवों के नाम पर जाति का नाम (अटक) रखा। .
उदाहरण स्वरूप – मोडले से मोल्लोत, रोहितगढ
से रुसात, अवध से अवधिया, कनोज के
कनोजिया आदि।
राजा व्रजपाल सिंह और ऊंझा का मंदिर
यूपी बिहार की सीमा पर स्थित
माधावती का राजा व्रजपाल सिंह महेत देश के
राजा चंद्रसेन के खिलाफ युद्ध हार गया। वह
वहाँ से अपने दल – बल के साथ गुजरात आया।
मातृश्राद्ध के लिए सिद्धपुर आया,
यहाँ उनका अपने स्वजाति के लोगों के साथ
मुलाकात हुई। उनके आग्रह से वे ऊंझा में रूके और
स्थायी हो गए। राजा व्रजपाल सिंह ने ई. संवत
156 संवत 212 में माँ उमिया के मंदिर बनवाए
तथा एक बड़ा यत्र किया। .
वेदकाल से माँ उमिया की पूजा
ईसवी संवत पूर्व 1250 से 1200 के समयकाल में
पाटीदार गुजरात में आकर बस गए। साथ में
माँ उमिया की पूजा जारी रखी। वेदों में धन –
धान्य तथा समृद्धि की देवी के रूप में
पूजा की जाने
वाली उषा देवी ही उमा देवी है। ऊंझा में
माँ उमिया का मंदिर बना। वहाँ प्रत्येक
आसो सूद 8 के रोज पल्ली चढाने का काम
जारी रहा। ऊंझा के आसपास के गाँवों में
भी पल्ली चढ़ाया जाता है। .
माँ उमिया का मंदिर
प्रचलित कथा के अनुसार
माँ उमिया की स्थापना उंझा में स्वयं भगवान
शंकर ने की थी।

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