Tuesday, 5 August 2014

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                अयोध्या एवं राम जन्मभूमि का इतिहास -२
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भाग एक मे आप ने पढ़ा की किस प्रकार राम जन्मभूमि मंदिर का विध्वंस हिन्दू वीरो की लाशों पर जलालशाह और बाबर ने किया ॥ अब आगे का वर्णन
अयोध्या मे विवादित ढांचे(बाबरी मस्जिद) का निर्माण और बाबर की कूटनीति: जैसा की पहले बताया जा चुका है जलालशाह की आज्ञा से मीरबाँकी खा ने तोपों से जन्भूमि पर बने मंदिर को गिरवा दिया और मस्जिद का निर्माण मंदिर की नींव और मंदिर निर्माण के सामग्रियों से ही शुरू हो गया॥ मस्जिद की दिवार को जब मजदूरो ने बनाना शुरू किया तो पूरे दिन जितनी दिवार बनती रात में अपने आप वो गिर जाती ॥ सबके मन मे एक प्रश्न की ये दीवार गिराता कौन है ?? मंदिर के चारो ओर सैनिको का पहरा लगा दियागया , महीनो तक प्रयास होते रहे लाखों रूपये की बर्बादी हुई मगर मस्जिद की एक दिवार तक न बन पाई ॥ हिन्दुस्थान के दो इस्लामिक गद्दारों ख्वाजा कजल अब्बास मूसा और जलालशाह की सारी सिद्धियाँ उस समय धरी की धरी रह गयी ॥ सारे प्रयासों के पश्चात भी मस्जिद की एक दिवार भी न बन पाने की स्थिति में वजीर मीरबाँकी खा ने विवश हो के बाबर को इस समस्या के बारे में एक पत्र लिखा। बाबर ने मीरबाँकी खा को पत्र भिजवाया की मस्जिद निर्माण का काम बंद करकेवापस दिल्ल्की आ जाओ । एक बार पुनः जलालशाह ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए ये सन्देश भिजवाया की बाबर अयोध्या आये।
जलालशाह का पत्र पा के बाबर वापस अयोध्या आया और जलालशाह और ख्वाजा कजल अब्बास मूसा से इस समस्या से निजात पाने का तरीका पूछा। ख्वाजा कजल अब्बास मूसा और जलालशाह ने सुझाव दिया की ये काम इस्लाम से प्राप्त की गयी सिद्धियों के वश का नहीं है , अब नीति से काम लेते हुए हमे हिन्दू संतो से वार्ता करनी चाहिए वही अपने प्रभाव और सिद्धियों से कुछ रास्ता निकाल सकते हैं।
बाबर ने हिन्दू संतो के पास वार्ता का प्रस्ताव भेजा.। उस समय तक जन्मभूमि टूट चुकी थी और अयोध्या को खुर्द मक्का बनाने के लिए कब्रों से पाटना शुरू किया जा चूका था , पूजा पाठ भजन कीर्तनपर जलालशाह ने प्रतिबन्ध लगवा दिया था। इन विषम परिस्थितियों में हिन्दू संतो ने बाबर से वार्ता करने का निर्णय लिया जिससे काम जन्मभूमि के पुनरुद्धार का एक रास्ता निकाल सके।
बाबर ने अब धार्मिक सद्भावना की झूटी कूटनीति चलते हुए संतो से कहा की आप के पूज्य बाबा श्यामनन्द जी के बाद जलालशाह उनके स्वाभाविक उत्तराधिकारी है और ये मस्जिद निर्माण की हठ नहीं छोड़ रहे हैं , आप लोग कुछ उपाय बताएं उसके बदले में हिंदुओं को पुजा पाठ करने मे छूट दे दी जाएगी॥
हिन्दू महात्माओं ने जन्मभूमि को बचाने का आखिरी प्रयास करते हुए अपनी सिद्धि से इसका निवारण बताया की यहाँ एकपूर्ण मस्जिद बनाना असंभव कार्य है । मस्जिद के नाम से हनुमान जी इस ढांचे का निर्माण नहीं होने देंगे ।इसे मस्जिद का रूप मत दीजिये। इसे सीता जी (सीता पाक अरबी मे ) के नाम से बनवाइए ॥ और भी कुछ परिवर्तन कराये मस्जिद का रूप न देकर यहाँ हिन्दू महात्माओं को भजन कीर्तन पाठ की स्वतन्त्रता दी जाए चूकी जलालशाह अपनी मस्जिद की जिद पर अड़ा था अतः महात्माओं ने सुझाव दिया की एक दिन मुसलमान शुक्रवार के दिन यहाँ जुमे की नमाज पढ़ सकते हैं।
जलालशाह को हिंदुओं को छूट देने का विचार पसंद नहीं आया मगर कोई रास्ता न बन पड़ने के कारण उन्होने हिंदु संतों का ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। मंदिर के निर्माण के प्रयोजन हेतु दिवारे उठाई जाने लगी और दरवाजे पर सीता पाक स्थान फारसी भाषा मे लिखवा दिया गया जिसे सीता रसोई भी कहते हैं ॥ नष्ट किया गया सीता पाक स्थान पुनः बनवा दिया गया लकड़ी लगा कर मस्जिदके द्वार मे भी परिवर्तन कर दिया ॥ अब वो स्थान न तो पूर्णरूपेण मंदिर था न ही मस्जिद । मुसलमान वहाँ शुक्रवाकर को जुमे की नमाज अदा करते और बाकी दिन हिंदुओं को भजनऔर कीर्तन की अनुमति थी॥
इस प्रकार मुगल सम्राट बाबर ने अपनी कूटनीति से अयोध्या मे एक ढांचा तैयार करने मे सफलता प्राप्त की जिसे हमारे कुछ भाई बाबरी मस्जिद का नाम देते हैं॥ यहाँ एक बात ध्यान देने योग्य है किसी भी मस्जिद मे क्या किसी भी हिन्दू को पुजा पाठ या भजन कीर्तन की इजाजत इस्लाम देता है ? ? यदि नहीं तो बाबर ने ऐसा क्यू किया ?? जाहीर है उसके मन मे उन काफिरो के प्रति प्यार तो उमड़ा नहीं होगा जिनके घर की बहू बेटियों को वो जबरिया अपने हरम मे रखतेथी और यदि ये एक धार्मिक सदभाव का नमूना था तो मंदिर को ध्वस्त करते समय 1 लाख 74 हजार हिंदुओं की लाशे गिरते समय बाबर की ये सदभावना कहा थी ??
यदि मीरबाँकी एवं बाबर के मंदिर को तोड़ने के निर्णय और उसके तथ्यात्मक और प्रमाणिक विश्लेषण पर आए और उस समय आस पास इसकी क्या प्रतिक्रिया हुई ये जानने की कोशिश करे..
बाबर के मंदिर को तोड़ने के निर्णय की प्रतिक्रिया के प्रमाण इतिहास में किसी एक जगह संकलित नहीं मिलते हैं इसका कारण ये था की उसके बाद का ज्यादातर इतिहास मुगलों के अनुसार लिखा गया। कुछ एक मुग़ल कालीन राजपत्रों और दस्तावेजों के माध्यम से जो बाते उभर कर सामने आई वो निम्नवत हैं.
जब मंदिर तोड़ने का निर्णय लिया गया उस समय बाबर ने व्यापक हिन्दू प्रतिक्रिया को देखते हुए बाहर के राज्यों से हिन्दुओं को अयोध्या आने पर रोक लगा दिया गया था। सरकार की आज्ञा प्रचारित की गयी की कोई भी ऐसा व्यक्ति जैस्पर ये संदेह हो की वह हिन्दू है और अयोध्या जाना चाहता है उसे कारागार मे डाल दिया जाए।
सन १९२४ मार्डन रिव्यू नाम के एक पत्र में "राम की अयोध्या नाम" शीर्षक से एक लेख प्रकाशित हुआ जिसके लेखक श्री स्वामी सत्यदेव परिब्रापजक थे जो की एक अत्यंत प्रमाणिक लेखक थे । स्वामी जी दिल्ली में अपने किसी शोध कार्य के लिए पुराने मुगलकालीन कागजात खंगाल रहे थे उसी समय उनको प्राचीन मुगलकालीन सरकारी कागजातों के साथ फारसी लिपि में लिथो प्रेस द्वारा प्रकाशित , बाबर का एक शाही फरमान प्राप्त हुआ जिस पर शाही मुहर भी लगी हुई थी। ये फरमान अयोध्या में स्थित श्री राम मंदिर कोगिराकर मस्जिद बनाने के सन्दर्भ में शाही अधिकारियों को जारी किया गया था । यह पत्र माडर्न रिव्यू के ६ जुलाई सन १९२४ के "श्री राम की अयोध्या" धारावाहिक में भी छपा था. उस फरमान का हिंदी अनुबाद निम्नवत है ।
"शहंशाहे हिंद मालिकूल जहाँ बाबर के हुक्म से हजरत जलालशाह (ज्ञात रहे ये वही जलालशाह है जो पहले अयोध्या के महंत महात्मा श्यामनन्द जी महाराज का शिष्य बन के अयोध्या में शरण लिया था) के हुक्म के बमुजिव अयोध्या के राम की जन्मभूमि को मिसमार करके उसी जगह पर उसी के मसाले से मस्जिद तामीर करने की इजाजत दे दी गयी. बजरिये इस हुक्मनामे के तुमको बतौर इत्तिला के आगाह किया जाता है की हिंदुस्तान के किसी भी गैर सूबे से कोई हिन्दू अयोध्या न जाने पावे जिस शख्श पर यह सुबहा हो की यह अयोध्या जाना चाहता है फ़ौरन गिरफ्तार करके दाखिले जिन्दा कर दिया जाए. हुक्म सख्ती से तमिल हो फर्ज समझकर" ... (अंत में बाबर की शाही मुहर)
बाबर के उपरोक्त हुक्मनामे से स्पष्ट होता है की उस समय की मुग़ल सरकार भी यह समझती थी की श्री राम जन्मभूमि को तोड़ कर उस जगह पर मस्जिद खड़ा कर देना आसान काम नहीं है। इसका प्रभाव सारे हिंदुस्थान पर पड़ेगा। धार्मिक भावनाए आहत होने से हिंदुओं का परे देश मे ध्रुवीकरण हो जाएगा उस स्थिति मे दिल्ली का सिंहासन बचना मुश्किल होगा अतः अयोध्या को अन्य प्रांतो से अलग थलग करने का हुक्मनामा जारी किया गया॥
चूकी उपलब्ध साक्ष्यों की परिधि के इर्दगिर्द ही ये विश्लेषण है अतः पूरे दावे के साथ मैं ये नहीं कह सकता की बाबर के इस फरमान की प्रतिक्रिया या असर क्या रहा ?? क्यूकी कोई ठोस लिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं है मगर जैसा पहले भी मैं लिख चूका हूँ , कनिंघम के लखनऊ गजेटियर में प्रकाशित रिपोर्ट यह बतलाती है कीयुद्ध करते हुए जब एक लाख चौहत्तर हजार हिन्दू जब मारे जा चुके थे और हिन्दुओं की लाशोंका ढेर लग गया तब जा के मीरबाँकी खां ने तोप के द्वारा रामजन्मभूमि मंदिर गिरवाया। कनिंघम के पास इस रिपोर्ट के क्या साक्ष्य थे ये तो कनिंघम के साथ ही चले गए मगर इस रिपोर्ट से एक बात स्थापित हुई की वहांमंदिर गिराने से पहले हिन्दुओं का प्रतिरोध हुआ था और उनकी बड़े स्तर पर हत्या भी हुई थी।
इसी प्रकार हैमिल्टन नाम का एक अंग्रेज बाराबंकी गजेटियर में लिखता है की " जलालशाह ने हिन्दुओं के खून का गारा बना केलखौरी ईटों की नीव मस्जिद बनवाने के लिए दी गयी थी। "
ये तो हुए अन्य इतिहासकारों के प्रसंग अब आते हैं बाबरनामा के एक प्रसंग पर जिसे पढ़करये बात तो स्थापित हो जाती है की बाबर के आदेश से जन्मभूमि का मंदिर ध्वंस हुआ था और उसी जगह पर विवादित ढांचा(मस्जिद) बनवाई गयी ..
बाबर के शब्दों में .. " हजरत कजल अब्बास मूसा आशिकन कलंदर साहब ( ज्ञात रहे ये वही हजरत कजल अब्बास मूसा हैं जो जलालशाह के पहले अयोध्या के महंत महात्मा श्यामनन्द जी महाराज का शिष्य बन के अयोध्या में शरण लिए) की इजाजत से जन्मभूमि मंदिर को मिसमार करके मैंने उसी के मसाले से उसी जगह पर यह मस्जिद तामीर की ( सन्दर्भ: बाबर द्वारा लिखित बाबरनामा पृष्ठ १७३)
इस प्रकार बाबर , वजीर मीरबाँकी खा के अत्याचारों कूटनीति और महात्माश्यामनन्द जी महाराज के दो आस्तीन में छुरा भोंकने वाले शिष्यों हजरत कजल अब्बास मूसा और जलालशाह के धोखेबाजी के फलस्वरूप रामजन्मभूमि का मंदिर गिराया गया और एक विवादित ढांचें (जिसे कुछ भाई मस्जिद का नाम देते हैं) का निर्माण हुआ ॥
लेख के अगले भाग मे मै उन हिन्दू वीर राजाओं का क्रमिक वर्णन दूंगा जिन्होने जन्मभूमि के रक्षार्थ अनेकों युद्ध किए और जन्मभूमि को मुक्त करने का प्रयास किया॥

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