Tuesday, 12 August 2014

मानसिक शांति


विहाय कामान्य: सर्वान्पूमांश्रच्रति नि:स्पृह:।
निर्ममो निंरहकार स शान्तिमधिगच्छति।।
अर्थात जो पुरुष संपूर्ण कामनाओं को त्यागकर ममातारहितअहंकार रहित और स्पृहारहित हुआ विचरता है।वही शांति को प्राप्त होता है एवं स्थितप्रज्ञ कहलाता है। अर्थात मानसिक शांति समस्वरताजीवन योग की धुरी एक ही है-विहाय कामान्य:-संपूर्ण त्याग। यही सच्चे शिष्य कीसंतुलित व्यक्ति की निशानी है कि उसकी कोई कामनाएँ नहीं रहती इसीलिए वह शांति को प्राप्त द्रिष्ट गोचर होता है। वह ममता रहित भी होता है। कामना के रहते बुद्धि स्थिर नहीं रह सकती। कामना बाँधती है तो भक्ति मुक्त करती है। कामनाएँ घसीटती हैं तो भक्ति विर्सजन की ओर ले जाती है। जब कामनाएँ है बुद्धि अस्थिर है तो वह परमात्मचेतना में स्थित पुरुष कैसे बन सकता है। वही व्यक्ति स्थितप्रज्ञ हो सकता है जिसकी बुद्धि स्थिर हो। जब यह हो जाता हैसंसार में मन नहीं रहतास्रष्टि  के केन्द्र में व्यक्ति स्थिर हो जाता हैलगता है मै बुद्धि से परे हूँ। फिर दुनिया भर के प्रपंच मुझे सता नहीं सकते। नाम क्यों नहीं मिला,यश क्यों नहीं गाया गयामेरी कीर्ती क्यों नहीं हुर्इमेरी निंदा क्यों हुई यह सब चीजें परेशान नहीं करतीं। छोटा बच्चा खिलौना टुटने पर रोने लगता हैइसी प्रकार अस्थिर व्यक्ति कामनाओं के पूरा न होने पर रोता हैव्यथित होता है तथा तनाव ग्रस्त हो जाता हैजबकि एक बड़ा बच्चा जिसके लिए खिलौने कोई महत्व नहीं रखतेऐसा कोई  प्रसंग आने पर परेशान नहीं होता। एक परिपक्व व्यक्ति की तरह स्थितप्रज्ञ की स्थिति होती है। ऐसी स्थिति बनती है जब हम कामनाओं से मुक्त होकर आत्मा में स्थित हो जाते है।
अगले श्लोक में भगवान कहते है-
दु:खेवनुद्विगन्मना: सुखे” विगतस्पृह:।
वीतरागभयक्रोध: स्थितधीर्मुनीरूच्यते।।
अर्थात दुखो की प्राप्ति होने पर जिसके मन में उद्वेग नहीं होतासुखों की प्राप्ति में जो सर्वथा निसपृह है तथा जिनके रागभय और क्रोध नष्ट हो गए हैऐसा मुनि स्थिर बुद्धि कहा जाता है। दुखो के कारण तो कई आते हैपर उन्हें स्थितप्रज्ञ सहन कर लेता हैउद्विग्न नहीं होता। उसे सुख की कामना भी नहीं होती। सुख पाने की आकांश में वह उद्विग्न भी नहीं होता। वह वीतराग हो जाता है। स्वंय को राग,भयक्रोध से परे चलकर अपनी मन:स्थिति उच्चस्तर बना लेता है। हम जैसे समान्य व्यक्ति सुखों की इच्छा बराबर बनाए रखते हैदुख में परेशान हो जाते है। यही हममें व स्थितप्रज्ञ में सबसें बड़ा अन्तर है।

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