Tuesday, 5 August 2014

पुराणों के अनुसार
सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृतिदेवी स्वयं
को पाँच भागों में विभक्त करती हैं. दुर्गा,
राधा, लक्ष्मी, सरस्वती और सावित्री. ये
पाँच देवियाँ पूर्णतम प्रकृति कहलाती हैं.
इन्हीं प्रकृति देवी के अंश, कला, कलांश और
कलाशांश भेद से अनेक रुप हैं, जो विश्व
को समस्त स्त्रियों में दिखाई देते हैं.
मार्कण्डेयपुराण में भी यही उद् घोष है-
'स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु'
प्रकृतिदेवी के एक प्रधान अंश को ' देवसेना '
कहते हैं. जो सबसे श्रेष्ठ
मातृका मानी जाती हैं. ये समस्त लोकों के
बालकों की रक्षिका देवी हैं.
प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन
देवी का एक नाम षष्ठी भी है.
विष्णुमाया षष्ठी देवी बालकों की रक्षिका एवं
आयु प्रदा हैं.
षष्ठी देवी का पूजन पृथ्वी पर कबसे हुआ इस
विषय में एक कथा पुराण में वर्णित है।
जिसमें कहा गया है कि प्रथम मनु प्रियव्रत
को कोई संतान नहीं थी। जिसको लेकर
कश्यप ऋषि के पास उसने अपने कष्ट
को रखा। महर्षि ने पुत्रेष्ठि यज्ञ करने
को कहा। इससे उनकी पत्नी मालिनी ने
एक मृत पुत्र को जन्म दिया। संताप में मृत
शिशु को छाती से लगाकर विलाप करने
लगी। तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी।
वहां उपस्थित लोगों ने देखा कि आकाश
से एक ज्योतियुक्त विमान पृथ्वी की ओर
आ रहा है। नजदीक आने पर देखा कि उस
विमान में एक दिव्याकृति नारी बैठी है।
राजा द्वारा स्तुति करने पर देवी ने
कहा कि मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री हूं।
अपुत्रों को पुत्र प्रदान करती हूं। इतना कहते
हुए देवी ने मृत बालक के शरीर का स्पर्श
किया और बालक जीवित हो उठा।
महाराज प्रियव्रत ने अनेक प्रकार से
देवी की स्तुति की। देवी ने कहा कि तुम
ऐसी व्यवस्था करो कि पृथ्वी पर
सदा हमारी पूजा हो। राजा ने अपने
राज्य में प्रतिमास शुक्ल पक्ष
की षष्ठी को षष्ठी महोत्सव की शुरुआत
की। इस कारण पृथ्वी पर जन्म, नामकरण,
अन्नप्राशन आदि अवसरों पर षष्ठी पूजन
प्रारंभ हुआ। इनका पूजा विधान ब्रह्मवैवर्त
पुराण में वर्णित है।
मैथिल वर्षकृत्य विधि में प्रतिहार षष्ठी के
नाम से सूर्य षष्ठी व्रत की चर्चा है।
कहा गया है कि कार्तिक शुक्ल
षष्ठी को सविधि पूजा करने से शरीर
आरोग्य रहता है और सकल मनोकामनाओं
की पूर्ति होती है। एक कथा राजा सगर से
संबंधित है। उन्होंने पंचमीयुक्त
षष्ठी का व्रत किया था। जिस कारण
कपिल मुनि के शाप से उनके
सभी पुत्रों का उद्धार हो सका था।
ब्रह्मवैवर्त में आया है कि षष्ठी , मंगलचण्डी एवं मनसा प्रकृति के अंश हैं। षष्ठी बच्चों की देवी हैं। उन्हें माताओं में देव सेना कहा गया है।वे स्कन्द की पत्नी हैं, वे बच्चों की रक्षा करती हैं, उन्हें दीर्घ जीवन देती हैं।
इस पुराण में सूतिका गृह में शिशु जन्म के छठे दिन देवी पूजा की कथा आयी है।
उनका वाहन काली बिल्ली बताया जाता हे।
लोकपरंपराके अनुसार सूर्य देव और
छठी मइयाका संबंध भाई-बहनका है । लोक
मातृका षष्ठीकी पहली पूजा सूर्यने
ही की थी ।

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