Monday, 30 June 2014

(1) पार्श्व द्वार बेढंगे मार्ग (पैंगमेन जुओताओ)
पार्श्व द्वार बेढंगी मार्गों को अपारंपरिक (चीमन) साधना मार्ग भी कहा जाता है। धर्मों की स्थापना से पहले अनेक चीगोंग साधना विधियां प्रचलित थीं। धर्मों के क्षेत्र से बाहर कई ऐसी पध्दतियां हैं जो सार्वजनिक हुई हैं। उनमें से अधिकतर में व्यवस्थित सिध्दांतों का अभाव रहा है और इसलिए पूर्ण साधना पध्दतियां नहीं बन पायी हैं। फिर भी चीमन साधना मार्गों की स्वयं अपनी व्यवस्थित, पूर्ण तथा अत्यधिक सघन साधना पध्दति रही है, और यह भी, जन साधारण में प्रचलित हुई है। इन अभ्यास पध्दतियों को अक्सर पार्श्व द्वार बेढंगा मार्ग कहा जाता है। इन्हें ऐसा क्यों कहा जाता है? अक्षरश: पैंगमेन का अर्थ है ''पार्श्व द्वार''; तथा जुओंताओ का अर्थ है ''बेढंगा मार्ग''। लोग बुध्द और ताओ दोनों विचारधाराओं के साधना मार्गों को सीधा मार्ग मानते हैं, और बाकी सभी को पार्श्व द्वार बेढंगा मार्ग अथवा दुष्ट साधना मार्ग। वास्तव में, ऐसा नहीं है। प्राचीन काल से ही पार्श्व द्वार बेढंगे मार्गों का गुप्त रूप से अभ्यास होता रहा है, तथा एक समय में एक ही शिष्य को सिखायी जाती है। इन्हें सार्वजनिक रूप से सिखाने की अनुमति नहीं थी। यदि इन्हें सार्वजनिक किया जाता तो लोग ठीक से समझ नहीं पाते। यहां तक कि इसके अभ्यासियों का भी मानना है कि इसका संबंध न तो बुध्द विचारधारा से है और न ही ताओ विचारधारा से। अपारंपरिक मार्गों के साधना नियमों में कठोर शिनशिंग की आवश्यकता होती है। इसकी साधना ब्रह्मांड की प्रकृति के अनुरूप है, तथा परोपकारी कार्य करने तथा अपने शिनशिंग पर ध्यान देने पर जोर है। इस पध्दति के कुछ पहुंचे हुए गुरु अत्यंत विलक्षण सिध्दियों के स्वामी हैं, और उनकी कुछ विलक्षण सिध्दियां बहुत शक्तिशाली हैं। मैं चीमन साधना पध्दति के तीन पहुंचे हुए गुरुओं से मिला हूं जिन्होंने मुझे कुछ ऐसी विधियां सिखाईं जो बुध्द या ताओ विचारधारा में नहीं पाई जातीं। साधना के दौरान इन सभी विधियों का अभ्यास बहुत कठिन था, इसलिए जो गोंग प्राप्त हुआ वह विलक्षण था। इसके विपरीत, तथाकथित बुध्द तथा ताओ विचारधारा की साधना पध्दतियों में कठोर शिनशिंग मानदण्ड का अभाव है, जिस कारण उनके अभ्यासी उच्च स्तर पर साधना नहीं कर पाते। इसलिए हमें प्रत्येक साधना प्रणाली को निष्पक्ष रूप से देखना चाहिए।
(2) युध्द कला चीगोंग
युध्द कला चीगोंग एक प्राचीन परंपरा की देन है। इसके अपने सिध्दान्तों और साधना पध्दतियों की पूर्ण प्रणाली होने के कारण, यह एक स्वतन्त्र प्रणाली बन गई है। स्पष्ट कहा जाये तो, इसमें वही अलौकिक सिध्दियां विकसित होती हैं जो आन्तरिक साधना के निम्नतम स्तर पर होती हैं। वे सभी अलौकिक सिध्दियां जो युध्द कला साधना में विकसित होती हैं वे आन्तरिक साधना में भी विकसित होती हैं। युध्द कला साधना का आरंभ भी ची क्रियाओं के करने से होता है। उदाहरण के लिए, जब एक पत्थर को वार करके तोड़ना होता है, तो आरंभ में युध्द कला अभ्यासी को अपनी बाहें घुमानी होती हैं जिससे उनमें ची सक्रिय हो सके। समय के साथ, उसके ची की प्रकृति बदल जाती है और यह एक शक्ति पुंज बन जाती है जिसकी उपस्थिति प्रकाश रूप में प्रतीत होती है। इस स्थिति पर उसकागोंग भी कार्य करना आरंभ कर देता है। गोंग में चेतनता होती है क्योंकि यह एक विकसित पदार्थ है। इसका अस्तित्व दूसरे आयाम में होता है और यह उसके मस्तिष्क से आने वाले विचारों द्वारा नियन्त्रित होता है। हमला होने पर, युध्द कला अभ्यासी को ची पहुंचाने की आवश्यकता नहीं पड़ती; केवल एक विचार करने से ही गोंग आ जाता है। साधना के विकासक्रम में उसका गोंग लगातार सुदृढ़ होता रहेगा, इसके कण और परिष्कृत और शक्ति और सघन होती जायेगी। लौह रेत पंजा, और सिंदूर पंजे जैसे कौशल प्रकट होंगे। जैसे हम फिल्मों, पत्रिकाओं और टेलीविजन कार्यक्रमों में देखते हैं, कुछ वर्षों में सुनहरे घंटियों वाली ढ़ाल और लौह कवच जैसे कौशल प्रकट हुए हैं। ये आन्तरिक साधना और युध्द कला साधना के परस्पर अभ्यास से उत्पन्न होते हैं। वे आन्तरिक और बाह्य साधना को एक साथ करने पर विकसित होते हैं। आन्तरिक साधना के लिए, व्यक्ति को नैतिकता का पालन और शिनशिंगकी साधना करना आवश्यक है। इसे यदि सैध्दान्तिक दृष्टिकोण से समझाया जाये तो, जब किसी व्यक्ति की योग्यताऐं एक विशेष स्तर तक पहुंच जाती हैं, तब गोंग शरीर के आन्तरिक भाग से बाह्य भाग की ओर निकलता है। इसके ऊंचे घनत्व के कारण यह एक सुरक्षा ढ़ाल बन जाता है। नियमों के अनुसार, हमारी आन्तरिक साधना और युध्द कला साधना में सबसे मुख्य अन्तर यह है कि युध्द कलाओं में बहुत प्रबल गति क्रियाऐं की जाती हैं और अभ्यासी शान्ति अवस्था में प्रवेश नहीं करते। शान्ति अवस्था में न रहने से ची त्वचा के नीचे प्रवाहित होती है और पेषियों के आर-पार निकलती है, इसका प्रवाह व्यक्ति के तानत्येन[33] में नहीं होता। इसलिए वे चेतनता की साधना नहीं करते, और न ही वे इसके सक्षम हैं।
(3) विपरीत साधना और गोंग ऋण
कुछ लोगों ने कभी चीगोंग का अभ्यास नहीं किया। तब एक दिन उन्हें अचानक गोंग की प्राप्ति हो जाती है और उनकी शक्ति बहुत प्रबल होती है, और वे दूसरों के रोग भी ठीक कर पाते हैं। लोग उन्हेंचीगोंग गुरु कहने लगते हैं और वे, स्वयं भी, दूसरों को सिखाने लगते हैं। उनमें से कुछ, यद्यपि उन्होंने स्वयं कभी चीगोंग नहीं सीखा या उसकी केवल कुछ क्रियाऐं ही सीखी हैं, दूसरों को कुछ फेरबदल करके सिखाने लगते हैं। इस प्रकार का व्यक्ति चीगोंग गुरु कहलाने के योग्य नहीं है। उनके पास दूसरों को देने के लिए कुछ नहीं होता। वे जो कुछ सिखाते हैं उसका प्रयोग उच्च स्तर की साधना के लिए नहीं किया जा सकता; अधिक से अधिक उसका प्रयोग रोग हटाने और स्वास्थ्य की प्राप्ति में प्रयोग हो सकता है। इस प्रकार का गोंग कैसे आता है? पहले विपरीत साधना की बात करते हैं। साधारणत: ''विपरीत साधना'' का संबंध उन भद्र लोगों से है जिनका शिनशिंग बहुत ऊंचा होता है। अधिकतर वे वृध्द होते हैं, लगभग पचास से अधिक उम्र के। उनके पास आरंभ से साधना करने के लिए पर्याप्त समय नहीं होता, क्योंकि ऐसे पहुंचे हुए गुरुओं का मिल पाना सरल नहीं है जो शरीर और मन दोनों के साधना की चीगोंग क्रियाऐं सिखा सकें। जिस पल इस प्रकार के व्यक्ति को साधना करने की इच्छा होती है, उच्च स्तर के गुरु उस व्यक्ति के पास उसके शिनशिंग के अनुपात में गोंग भेज देते हैं। इससे विपरीत में साधना, ऊपर से नीचे की ओर, संभव हो पाती है, और इस प्रकार यह बहुत शीघ्र हो जाती है। दूसरे आयाम में, ऊंचे स्तर के गुरु परावर्तन करते हैं और उस व्यक्ति को लगातार उसके शरीर के बाहर से गोंग उपलब्ध करते रहते हैं; विशेषकर तब जब वह व्यक्ति उपचार कर रहा होता है और उसके चारों ओर ऊर्जा क्षेत्र बना होता है। गुरु द्वारा दिया गया गोंग वैसे ही प्रवाहित होता है जैसे एक पाइप लाइन में। कुछ लोग यह जानते भी नहीं हैं कि गोंग कहां से आ रहा है। यह विपरीत साधना है।
दूसरे प्रकार की साधना ''गोंग ऋण'' कहलाती है, और इसके लिए उम्र की सीमा नहीं है। एक व्यक्ति के पास एक मुख्य चेतना (ज़ु यिशी) के साथ-साथ सह चेतना (फु यिशी) होती है, और यह मुख्य चेतना की तुलना में साधारणत: ऊंचे स्तर पर होती है। कुछ लोगों की सह चेतनाऐं इतने ऊंचे स्तर पर पहुंच जाती हैं कि वे ज्ञान प्राप्त लोगों से संपर्क कर सकती हैं। जब इस प्रकार के लोग साधना करना चाहते हैं, उनकी सह चेतनाऐं भी अपने स्तरों में उन्नति करना चाहती हैं और तुरन्त उन ज्ञान प्राप्त लोगों से गोंग को ऋण पर प्राप्त करने के लिए संपर्क करती हैं। गोंग को ऋण के रूप में प्रदान किये जाने के बाद यह व्यक्ति रातोंरात उसे प्राप्त कर लेता है। गोंग की प्राप्ति के बाद, उसमें लोगों का उपचार कर उनके दु:ख दर्द हटाने की योग्यता आ जाती है। वह व्यक्ति साधारणत: ऊर्जा क्षेत्र बना कर उपचार करने की प्रणाली का प्रयोग करता है। उसमें लोगों को व्यक्तिगत रूप से शक्ति प्रदान करने और कुछ तरीके सिखाने की योग्यता भी आ जाती है।
इस प्रकार के लोगों की शुरूआत साधारणतया बहुत अच्छी होती है। क्योंकि उनके पास गोंग होता है, वे लोकप्रिय हो जाते हैं और उन्हें प्रसिध्दि और निजी लाभ दोनों प्राप्त होते हैं। प्रसिध्दि और निजी लाभ के प्रति आसक्ति उनकी विचारधारा का एक बड़ा भाग बन जाती है & साधना से भी अधिक। उस स्थिति के बाद उनका गोंग कम होने लगता है, और कम होते होते अंत में समाप्त हो जाता है।
(4) विश्वक भाषा
कुछ लोग अचानक ही एक विशेष प्रकार की भाषा बोलने लगते हैं। जब वे बोलते हैं तो यह बहुत धारा प्रवाह सुनाई देती है, फिर भी यह किसी भी मानव समाज की भाषा नहीं है। इसे क्या कहा जाता है? इसे खगोलीय भाषा कहते हैं। ''विश्वक भाषा'' कहलाई जाने वाली यह वस्तु वास्तव में उन परजीवों की है जिनका स्तर बहुत ऊंचा नहीं है। वर्तमान में यह घटना देश भर के कई चीगोंग अभ्यासियों के साथ हो रही है; उनमें से कुछ तो कई प्रकार की भाषाऐं बोल सकते हैं। वास्तव में, हमारी मनुष्य जाति की भाषाऐं भी उत्कृष्ट हैं और वे एक हजार से भी अधिक प्रकार की हैं। क्या विश्वक भाषा को एक अलौकिक सिध्दि मानना चाहिए? मैं कहता हूं कि ऐसा नहीं है। यह कोई इस प्रकार की अलौकिक सिध्दि नहीं है जो आपसे उत्पन्न हुई हो, न ही यह उस प्रकार की सिध्दि है जो आपके बाहर से आई हो। बल्कि, यह बाहरी परजीवों का कौशल है। इन परजीवों का अस्तित्व कुछ ऊंचे स्तर से है & कम से कम मनुष्य जाति से ऊंचे स्तर से। उनमें से ही एक वार्तालाप करता है, जबकि जो व्यक्ति विश्वक भाषा बोल रहा होता है केवल एक माध्यम का कार्य करता है। अधिकतर लोग स्वयं यह नहीं जानते वे क्या बोल रहे हैं। केवल वे लोग जिनके पास मन को पढ़ पाने की योग्यता है, उन शब्दों का कुछ अर्थ लगा पाते हैं। यह अलौकिक सिध्दि नहीं है, किन्तु कई लोग जो इन भाषाओं को बोल चुके हैं स्वयं को श्रेष्ठ और गर्वान्वित महसूस करते हैं और मानते हैं कि यह एक अलौकिक सिध्दि है। वास्तव में, ऊंचे स्तर के तीसरे नेत्र वाला व्यक्ति निश्चित रूप से यह देख सकता है कि इस व्यक्ति के ठीक ऊपर से एक परजीव उसके मुंह के द्वारा बोल रहा है।
वह परजीव इस व्यक्ति को अपनी कुछ शक्ति देते हुए विश्वक भाषा बोलना सिखाता है। किन्तु इसके बाद यह व्यक्ति उसके नियन्त्रण में होगा, इसलिए यह सच्चा साधना मार्ग नहीं है। यद्यपि वह परजीव कुछ ऊंचे आयाम में है, किन्तु यह सच्चा साधना मार्ग नहीं है। इसलिए वह यह नहीं जानता कि साधकों को स्वस्थ रहना या रोग उपचार करना कैसे सिखाया जाये। इसलिए, वह बोलने के द्वारा शक्ति देने की विधि का प्रयोग करता है। क्योंकि यह बिखर जाती है, इस ऊर्जा में कोई शक्ति नहीं होती। यह कुछ मामूली रोगों के उपचार के लिए प्रभावशाली है किन्तु गंभीर रोगों के लिए अनुपयुक्त है। बुध्दमत बताता है कि कैसे ऊंचे स्तर के जीव साधना नहीं कर पाते क्योंकि वहां कष्ट और विरोधाभास का अभाव होता है; साथ ही, वे स्वयं तप नहीं कर सकते और अपना स्तर बढ़ा पाने में असमर्थ होते हैं। इसलिए वे ऐसे तरीके खोजते हैं जिससे लोगों को अपना स्वास्थ्य सुधारने में मदद मिल सके ओर वे स्वयं का स्तर उठा सकें। यही विश्वक भाषा है। यह न तो कोई अलौकिक सिध्दि है और न ही चीगोंग ।
(5) प्रेत ग्रसित होना (फूटी)
प्रेत ग्रसित (फूटी) होने का सबसे हानिकारक प्रकार किसी निम्न स्तर के परजीव द्वारा ग्रसित होना है। यह किसी दुष्ट मार्ग द्वारा साधना करने से होता है। यह लोगों के लिए वास्तव में हानिकारक है, और प्रेत ग्रसित होने के परिणाम भयावह होते हैं। अभ्यास आरंभ करने के कुछ समय पश्चात ही, कुछ लोगों में रोग उपचार करने और पैसा कमाने की धुन सवार हो जाती है; वे पूरे समय केवल इसी बारे में सोचते रहते हैं। हो सकता है आरंभ में बहुत अच्छे रहे हों और किसी गुरु की देखरेख में हों। किन्तु, जब वे रोग उपचार करने और पैसा कमारे के बारे में सोचने लगते हैं तो बात बिगड़ जाती है। तब वे इस प्रकार के परजीव को आकर्षित कर बैठते हैं। हालांकि यह हमारे भोतिक आयाम में नहीं है किन्तु इसका वास्तव में अस्तित्व होता है।
इस प्रकार के साधक अचानक यह अनुभव करते हैं कि उनका तीसरा नेत्र खुल गया है और उनके पास गोंग है, किन्तु यह वास्तव में ग्रसित करने वाली दुष्टात्मा है जिसका उनके मस्तिष्क पर नियंत्रण है। जो यह देखती है उसी की झलक उसके मस्तिष्क पर परावर्तित करती है, जिससे उस व्यक्ति को लगता है उसका तीसरा नेत्र खुल गया है। जबकि उस व्यक्ति का तीसरा नेत्र किसी भी तरह नहीं खुला है। ग्रसित करने वाली दुष्टात्मा या पशु उस व्यक्ति को गोंग क्यों देना चाहते हैं? यह उसकी मदद क्यों करना चाहती है? यह इसलिए क्योंकि हमारे विश्व में पशुओं को साधना करना निषेध है। पशुओं को सच्चे साधना मार्ग की प्राप्ति की अनुमति नहीं है क्योंकि वे न तो शिनशिंग के बारे में कुछ जानते हैं और न ही अपने में सुधार कर सकते हैं। परिणामस्वरूप, वे मानव शरीर में प्रवेश करके मानव सत्व प्राप्त करना चाहते हैं। इस विश्व में एक दूसरा नियम भी है, अर्थात : हानि के बिना लाभ नहीं मिलता। इसलिए वे प्रसिध्दि और निजी लाभ के प्रति आपकी इच्छा की पूर्ति करना चाहते हैं। वे आपको धनवान और प्रसिध्द बना देंगे, किन्तु वे आपकी मदद मुफ्त में नहीं करेंगे। वे भी कुछ पाना चाहते हैं : आपका सत्व। जब वे आपको छोड़ेंगे आपके पास कुछ नहीं बचेगा और आप बहुत कमजोर, क्षीण हो चुके होंगे। यह आपके गिरे हुए शिनशिंग के कारण होता है। एक सच्चा मन हजार बुराईयों को दबा सकता है। जब आप सच्चे हैं आप बुराई को आकर्षित नहीं करेंगे। दूसरे शब्दों में, एक पवित्र साधक बनें, बुराईयों से बचें और केवल सच्ची साधना मार्ग का अभ्यास करें।
(6) एक सच्चा अभ्यास दुष्ट साधना मार्ग बन सकता है
यद्यपि कुछ लोग जो अभ्यास पध्दतियां सीखते हैं वे सच्चे साधना मार्ग की होती है, वे वास्तव में भूल से दुष्ट मार्ग अपना सकते हैं क्योंकि वे स्वयं पर कठिन आवश्यकताओं की पूर्ति, अपने शिनशिंग का संवर्धन और अपनी क्रियायें करते हुए बुरे विचारों को रोकना, नहीं कर पाते। उदाहरण के लिए, जब कोई व्यक्ति खड़े होकर मुद्रा या बैठ कर ध्यानमुद्रा में होता है, उसके विचार वास्तव में धान, प्रसिध्दि, निजी स्वार्थ पर होते हैं या यह कि "उसने मेरे साथ बुरा किया है, मुझे अलौकिक सिध्दियां मिल जाऐं फिर मैं इसे देख लूंगा"। या वह किसी अलौकिक सिध्दि के बारे में सोच रहा होता है, जिससे उसके अभ्यास में कुछ बहुत बुरे तत्वों का मिलन हो जाता है और वास्तव में वह दुष्ट मार्ग से अभ्यास कर रहा है। यह बहुत खतरनाक है क्योंकि इससे कुछ निम्नस्तर के परजीव जैसे बुरे तत्व आकर्षित हो सकते हैं। हो सकता है वह व्यक्ति जानता भी न हो उसने उन्हें बुला लिया है। उसकी आसक्ति बहुत अधिक है; अपनी इच्छाओं की पूर्ति के उद्देश्य से साधना अभ्यास करना अमान्य है। वह पवित्र नहीं है, और उसका गुरु भी उसकी रक्षा करने में असमर्थ होगा। इसलिए, यह आवश्यक है कि साधक अपनेशिनशिंग को कठोरता से संभाले, मन पवित्र रखे और कोई आसक्ति न रखे। इसके विपरीत करने पर समस्याऐं आ सकती हैं।

[1] चीगोंग - मानव शरीर की साधना में प्रयोग होने वाली पध्दतियों के लिए उर्पयुक्त शब्द। वर्तमान में चीगोंग क्रियाएं चीन में बहुत लोकप्रिय हुई हैं। नोट: यह और इसके बाद के सभी नोट अनुवादक के हैं.
[2] फालुन गोंग - ''धर्म चक्र चीगोंग'', फालुन गोंग और फालुन दाफा दोनों का प्रयोग इस प्रणाली के लिए होता है।
[3] फालुन - ''धर्म चक्र''
[4]गोंग - ''साधना शक्ति''
[5] नाड़ी - शरीर में शक्ति वाहिकाओं का जाल जिनमें ची का प्रवाह होता है। पारंपरिक चीनी वैद्यों के अनुसार रोग तभी उत्पन्न होता है जब नाड़ियों में ची का प्रवाह अबरुध्द हो जाता है।
[6] तान जिंग, ताओ जांग - साधना के लिए प्राचीन चीनी ताओ धर्म ग्रंथ।
[7] त्रिपिटक - पाली भाषा में बौध्द धर्म ग्रंथ।
[8] अरहत - बुध्द विचारधारा में एक ज्ञान प्राप्त व्यक्ति जो त्रिलोक से परे हैं किन्तु बोधिसत्व से निम्न हैं।
[9] तांग राजवंश - चीन के इतिहास में एक समृध्द काल (618-907 ए.डी.)।
[10] बनती - मूल शरीर, इस आयाम तथा अन्य आयामों का शरीर।
[11] ची - ''प्राण शक्ति'', ऐसा माना जाता है कि यह मनुष्य का स्वास्थ्य निर्धारित करती है।
[12] ची - इसमें चीनी भाषा का दूसरा अक्षर प्रयोग होता है किन्तु बोला एक समान जाता है।
[13] शिनशिंग - मन या हृदय की प्रकृति, सदाशीलता।
[14] तान - साधक के शरीर में दूसरे आयामों से एकत्रित शक्ति पुंज।
[15] ताओ विचारधारा में बाह्य रासायनिक प्रक्रियाओं को शरीर की आंतरिक साधना को समझाने के लिए मुहावरे की तरह किया जाता है।
[16] शानगन बिन्दु - दोनों भौहों के बीच थोड़ा नीचे स्थित एक एक्यूपंक्चर बिन्दु।
[17] 'ची' का प्रयोग उन पदार्थों का वर्णन करने के लिए भी किया जा सकता है जो अदृष्य और पारदर्षी हैं, जैसे वायु, गंध, क्रोध, आदि।
[18] प्राचीन काल में चीनी औषधियों के कुछ प्रसिध्द चिकित्सक।
[19] चीनी चिकित्सा में, नब्ज़ का निरीक्षण एक जटिल और महत्वपूर्ण भाग है।
[20] छाओ छाओ - तीन राजवंशों (220-265 ए.डी.) के काल का एक सम्राट।
[21] फोआ-तोआ - ''बुध्द''
[22] चहाई - एक प्रमुख चीनी शब्दकोश
[23] महान सांस्कृतिक क्रान्ति - चीन में एक कम्यूनिष्ट राजनैतिक आंदोलन जिसमें पारंपरिक मूल्यों और संस्कृति की आलोचना की गई (1966-1976).
[24] शाक्यमुनि - बुध्द शाक्यमुनि
[25] समाधि - बौध्द ध्यान अवस्था
[26] धर्म - धम्म। इसे चीन में फा कहते हैं।
[27] महायान - बुध्दमत की एक शाखा
[28] तथागत - बुध्द विचारधारा में एक ज्ञान प्राप्ति का स्तर जो अरहट और बोधिसत्व से ऊंचा है।
[29] बोधिसत्व - बुध्द विचारधारा में ज्ञान प्राप्ति का यह स्तर अरहट से ऊंचा किन्तु तथागत से कम है।
[30] शिन जियांग - चीन के उत्तर पश्चिम में एक राज्य।
[31] हान क्षेत्र - इसमें चीन के मध्य के क्षेत्र सम्मिलित हैं (जैसे तिब्बत आदि)।
[32] हवे चांग - तांग राजवंश (841-846) के समय में सम्राट वू जोंग का काल।
[33] तानत्येन - ''तान का श्क्ति क्षेत्र'', यह उदर के निचले भाग में होता है।

No comments:

Post a Comment