गायत्री की २४ शक्ति
गायत्री मंत्र में चौबीस अक्षर हैं ।। तत्त्वज्ञानियों ने इन अक्षरों में बीज रूप में विद्यमान उन शक्तियों को पहचाना जिन्हें चौबीस अवतार, चौबीस ऋषि, चौबीस शक्तियाँ तथा चौबीस सिद्धियाँ कहा जाता है ।। देवर्षि, ब्रह्मर्षि तथा राजर्षि इसी उपासना के सहारे उच्च पदासीन हुए हैं ।। 'अणोरणीयान महतो महीयान' यही महाशक्ति है ।। छोटे से छोटा चौबीस अक्षर का कलेवर, उसमें ज्ञान और विज्ञान का सम्पूर्ण भाण्डागार भरा हुआ है ।। सृष्टि में ऐसा कुछ भी नहीं, जो गायत्री में न हो ।। उसकी उच्चस्तरीय साधनाएँ कठिन और विशिष्ट भी हैं, पर साथ ही सरल भी इतनी है कि उन्हें हर स्थिति में बड़ी सरलता और सुविधाओं के साथ सम्पन्न कर सकता है ।। इसी से उसे सार्वजनीन और सार्वभौम माना गया ।। नर- नारी, बाल- वृद्ध बिना किसी जाति व सम्प्रदाय भेद के उसकी आराधना प्रसन्नता पूर्वक कर सकते हैं और अपनी श्रद्धा के अनुरूप लाभ उठा सकते हैं ।।
'गायत्री संहिता' में गायत्री के २४ अक्षरों की शाब्दिक संरचना रहस्य युक्त बतायी गयी है और उन्हें ढूँढ़ निकालने के लिए विज्ञजनों को प्रोत्साहित किया गया है ।। शब्दार्थ की दृष्टि से गायत्री की भाव- प्रक्रिया में कोई रहस्य नहीं है ।। सद्बुद्धि की प्रार्थना उसका प्रकट भावार्थ एवं प्रयोजन है ।। यह सीधी- सादी सी बात है जो अन्यान्य वेदमंत्रों तथा आप्त वचनों में अनेकानेक स्थानों पर व्यक्त हुई है ।। अक्षरों का रहस्य इतना ही है कि साधक को सत्प्रवृत्तियाँ अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं ।। इस प्रेरणा को जो जितना ग्रहण कर लेता है वह उसी अनुपात से सिद्ध पुरुष बन जाता है ।। कहा गया है-
चतुविंशतिवर्णेर्या गायत्री गुम्फिता श्रुतौ ।।
रहस्ययुक्तं तत्रापि दिव्यै रहस्यवादिभिः॥ गायत्री संहिता -८५
अर्थात्- वेदों में जो गायत्री चौबीस अक्षरों में गुँथी हुई है, विद्वान् लोग इन चौबीस अक्षरों के गूँथने में बड़े- बड़े रहस्यों को छिपा बतलाते हैं ।।
गायत्री की २४ शक्तियों की उपासना करने के लिए शारदा तिलक तंत्र का मार्गदर्शन इस प्रकार है ।।
ततः षडङ्गान्यभ्र्यचेत्केसरेषु यथाविधि ।।
प्रह्लादिनी प्रभां पश्चान्नित्यां विश्वम्भरां पुनः॥
विलासिनी प्रभवत्यौ जयां शांतिं यजेत्पुनः ।।
कान्तिं दुर्गा सरस्वत्यौ विश्वरूपां ततः परम्॥
विशालसंज्ञितामीशां व्यापिनीं विमलां यजेत् ।।
तमोऽपहारिणींसूक्ष्मां विश्वयोनिं जयावहाम्॥
पद्मालयां परांशोभां पद्मरूपां ततोऽर्चयेत् ।।
ब्राह्माद्याः सारुणा बाह्यं पूजयेत् प्रोक्तलक्षणाः॥ -शारदा० २१ ।२३ से २६
अर्थात्- पूजन उपचारों से षडंग पूजन के बाद प्रह्लादिनी, प्रभा, नित्या तथा विश्वम्भरा का यजन (पूजन) करें ।। पुनः विलासिनी, प्रभावती, जया और शान्ति का अर्चन करना चाहिए ।। इसके बाद कान्ति, दुर्गा, सरस्वती और विश्वरूपा का पूजन करें ।। पुनः विशाल संज्ञा वाली- ईशा (विशालेशा), 'व्यापिनी' और 'विमला' का यजन करना चाहिए ।। इसके अनन्तर 'तमो', 'पयहारिणी', 'सूक्ष्मा', 'विश्वयोनि', 'जयावहा', 'पद्मालया', 'पराशोभा' तथा पद्मरूपा आदि का यजन करें ।। 'ब्राह्मी' 'सारुणा' का बाद में पूजन करना चाहिए ।।
No comments:
Post a Comment