Friday, 20 June 2014


गायत्री के चौबीस अक्षरों में जो पृथक−पृथक शक्तियाँ हैं, उनके नाम शास्त्रकारों ने प्राचीन काल की आध्यात्मिक भाषा में बतलाये हैं ।। उस समय हर शक्ति को एक देवी के रूप में अलंकृत किया जाता था ।। देवी का अर्थ अब तो अन्तरिक्ष वासिनी अदृश्य महिला विशेष मानने का भ्रम चल पड़ा है, पर प्राचीन काल में देवी शब्द दिव्य शक्तियों के लिए ही प्रयोग किया जाता था ।। गायत्री की २४ शक्तियों का शास्त्रीय उल्लेख इस प्रकार है-
वर्णानां शक्तयः काश्च ताः शृणुष्व महामुने ।।
वामदेवी प्रिया सत्या विश्वा भद्रविलासिनी॥
प्रभावती जया शान्ता कान्ता दुर्गा सरस्वती ।।
विद्रुमा च विशालेशा व्यापिनी विमला तथा॥
तमोऽपहारिणी सूक्ष्माविश्वयोनिर्जया वशा ।।
पद्मालया परा शोभा भद्रा च त्रिपदा स्मृता॥
चतुर्विशतिवर्णानां शक्तयः समुदाहृताः॥ -देवी भागवत्
अर्थात् -- हे मुनि ! अब सुनो कि गायत्री के २४ अक्षरों में कौन- कौन २४ शक्तियाँ भरी पड़ी हैं ।।
(१) वामदेवी
(२) प्रिया
(३) सत्या
(४) विश्वा
(५) भद्र विलासिनी
(६) प्रभावती
(७) शान्ता
(८) कान्ता
(९) दुर्गा
(१०) सरस्वती
(११) विदु्रमा
(१२) विशालेशा
(१३) व्यापिनी
(१४) विमला
(१५) तमोपहारिणी
(१६) सूक्ष्मा
(१७) विश्वयोनि
(१८) जया
(१९) यशा
(२०) पद्मालया
(२१) परा
(२२) शोभा
(२३) भद्रा
(२४) त्रिपदा ।।

अन्यान्य ग्रंथों में गायत्री के एक- एक अक्षर के साथ जुड़ी हुई शक्तियों का वर्णन कई प्रकार से हुआ है ।। कहीं उन्हें शापित, कहीं मातृका, कहीं कला आदि नामों से संबोधित किया गया है ।।

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