Saturday, 14 June 2014


शुकरहस्योपनिषद | Suka Rahasya Upanishad | Importance of Suka Rahasya Upanishad
शुकरहस्योपनिषद कृष्ण यजुर्वेदीय उपनिषद शाखा का उपनिषद है. इस उपनिषद में महर्षि व्यास जी के आग्रह पर भगवान शिव उनके पुत्र शुकदेव को महावाक्यों का उपदेश ‘ब्रह्म रहस्य’ के रूप प्रदान करते हैं. शुकदेव जी के नाम से ही इस उपनिषद को शुकरहस्योपनिषद कहा गया है. इस उपनिषद में चार महावाक्य ॐ प्रज्ञानं ब्रह्म, ॐ अहं ब्रह्मास्मि, ॐ तत्त्वमसि और ॐ अयमात्मा ब्रह्म का उल्लेख किया गया है.

ॐ प्रज्ञानं ब्रह्म (चेतना ब्रह्म है) | Consciousness is Brahman

शुकरहस्योपनिषद में बताया गया है कि किस प्रकार ऋषि व्यास जी अपने पुत्र शुकदेव की ज्ञान प्राप्ति के लिए भगवान शिव के पास जाते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं कि वह उनके पुत्र शुकदेव को चार प्रकार के मोक्ष महावाक्य बताएं. तब भगवान शिव शुकदेव को ॐ प्रज्ञानं ब्रह्म अर्थात चेतना ही ब्रह्म है वह विशुद्ध-रूप, बुद्धि-रूप, मुक्त-रूप एवं अविनाशी है. सत्य, ज्ञान और सच्चिदानन्द स्वरूप का स्वामी है उसी का ध्यान इस चेतना द्वारा ज्ञात होता है.

उस ब्रह्म को जानने के लिए चित कि शुद्धता आवश्यक है, वह ब्रह्म ज्ञान गम्यता से परे है, ब्रह्म का ध्यान करके ही हम ‘मोक्ष’ को प्राप्त कर सकते हैं, उसी का आधार प्राप्त करके सभी जीवों में चेतना का समावेश होता है, वह अखण्ड विग्रह रूप में चारों ओर व्याप्त होता है. वही हमारी शक्तियों हमारी किर्याओं पर नियंत्रण करने वाला है. उसी की प्रार्थना द्वारा चित और अहंकार पर नियन्त्रण प्राप्त किया जा सकता है वह प्रज्ञान अर्थात चैतन्य विद्वान पुरुष है सभी में समाहित ब्रह्म मोक्ष का मार्ग है.

ॐ अहं ब्रह्मास्मि | I am Brahman

शुकरहस्योपनिषद में इस ॐ अहं ब्रह्मास्मि महावाक्य के अर्थ को बताते हुए कहा गया है कि ‘मैं ब्रह्म हूं’ जब जीव परमात्मा का अनुभव प्राप्त कर लेता है, और उससे साक्षात्कार कर बैठता है तब वह उसी ब्रह्म का रूप हो जाता है और साधक एवं ब्रह्म के मध्य द्वैत भाव समाप्त हो जाता है.

ॐ तत्त्वमसि | That Thou Art

शुकरहस्योपनिषद में इस ॐ तत्त्वमसि महावाक्य को स्पष्ट करते हुए भगवन कहते हैं कि ब्रह्म तुम्हीं हो,  सृष्टि पूर्व, द्वैत रहित, नाम, रूप से रहित,केवल ब्रह्म ही विराजमान था और आज भी वही है आदि से अंत उसी की सत्ता उपस्थित रही है. इसी कारण ब्रह्म को ‘तत्त्वमसि’ कहा गया. ब्रह्म  देह में रहते हुए भी उससे मुक्त है केवल आत्मा द्वारा उसका अनुभव होता है, वह संपूर्ण सृष्टि में होते हुए भी उससे दूर है.

ॐ अयमात्मा ब्रह्म | This Self is Brahman.

शुकरहस्योपनिषद के ॐ अयमात्मा ब्रह्म महावाक्य का अर्थ है ‘यह आत्मा ब्रह्म है से परिल़इत होता है. देह का प्राण आत्मा ही है वह आत्मा ही परब्रह्म के रूप में समस्त प्राणियों में विराजमान है. सम्पूर्ण चर, अचर में तत्त्व-रूप में वह व्याप्त है, आत्मतत्त्व के रूप में स्वयं प्रकाशित ब्रह्म है.

इस प्रकार चार मावाक्यों का के ज्ञान का बोध कराकर भगवान शिव शुकदेव को प्रणव मंत्र के विषय में बताते हैं तथा  ब्रह्मप्रणव के अर्थ को व्यक्त करते हैं  शिव शुकदेव को  वेद और वेद मंत्रों का संदेश,समझाते हैं. भगवान शिव शुकदेव को बताते हैं कि सच्चिदानन्द ब्रह्म को, तपस्या एवं साधना ध्यान द्वारा प्राप्त किया जा सकता है तथा गुरू के निर्देश स्वरुप तप करके ब्रह्म को जाना जा सकता है.

जो भी जीव इस ब्रह्म को जान लेते है वह मोक्ष को पाता है. इस प्रकार भगवान शिव के उपदेश को प्राप्त करके शुकदेव संपूर्ण सृष्टि स्वरूप परमेश्वर में तन्मय होकर विरक्त हो जाते हैं तथा प्ररिग्रह का त्याग करके तपोवन की ओर ब्रह्म साधना के लिए चले जाते हैं.

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