मंगला गौरी ऋात और उसका विधान
श्रावण मास का भारतीय स्त्रियों के जीवन में विशेष महत्व है। इस महीने में कजली तीज, श्रावण के सोमवार इत्यादि का उपवास अधिकतर भारतीय महिलाएं करती हैं। भाई और बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन का त्यौहार भी श्रावण के ही महीने में पड़ता है, जिसका इंतज़ार छोटी बच्चियां हों या युवा-अधेड़ महिलाएं सभी को रहता है। श्रावण मास में झूले झूलने का आनंद भी गांव की अल्हड़ गोरियां खूब उठाती हैं और झूलों पर जमकर पींगें भरती हैं। इस मौके पर उनके कंठ से खुशी के गीत फूट पड़ते हैं, जो उनकी खुशी तथा उमंग को व्यक्त करते हैं।
इसी श्रावण मास में महिलाओं के लिए एक और महत्वपूर्ण ऋात पड़ता है आदिशिक्त मां गौरी का मंगला गौरी ऋात, जो विश्व mangla-gouriके सर्जक तथा संहारक आदिदेव महादेव की अर्धांगिनी हैं। चूंकि यह ऋात मंगलवार को किया जाता है, इसलिए इसका नाम मंगला गौरी ऋात पड़ा। प्राय: प्रत्येक स्त्री अपने सुखी जीवन की मंगल कामना के ध्येय से इस ऋात को करती है और मां गौरी का ऋात-पूजन कर उनको प्रसन्न करके अपने जीवन को निर्विघ्न और सफल बनाने की कामना करती है।
मंगला गौरी ऋात का विधान :
इस ऋात के दिन प्रात: नहा-धोकर एक चौकी पर सफेद तथा लाल कपड़ा बिछायें। सफेद कपड़े पर नवग्रहों के नाम की चावल की नौ ढेरियां (नौ ग्रह) बनायें तथा लाल कपड़े पर गेहूं से षोडश मातृका की सोलह ढेरियां बनायें। उसी चौकी के एक तरफ चावल तथा फूल रखकर गणेश जी की स्थापना करें। चौकी के एक कोने पर गेहूं की छोटी सी ढेरी रखकर उस पर जल से भरा कलश रखें। कलश के मुंह पर आम की एक छोटी सी शाखा (टहनी) डाल दें। फिर आटे का एक चार मुंहवाला दीपक और सोलह धूपबत्ती जलायें। सबसे पहले गणेशजी का पूजन करें। उस पर चंदन, रोली, पान, सुपारी, सिंदूर, पंचामृत, जनेऊ, लौंग, पान, चावल, फूल, इलायची, बेलपत्र, फल, मेवा तथा दक्षिणा चढ़ाकर गणेशजी की आरती करें। इसके बाद कलश का पूजन करें।
एक मिट्टी के सकोरे में आटा रखकर उस पर सुपारी रखें और दक्षिणा आटे में दबा दें। फिर बेल पत्र चढ़ायें। अब गणेशजी की भांति ही सभी सामग्री के साथ कलश का पूजन करें, परंतु ध्यान रहे कलश पर सिंदूर तथा बेल पत्र न चढ़ायें। इसके उपरांत नौग्रहों (चावल की नौ ढेरियों) की पूजा करें। इन पर रोली तथा जनेऊ न चढ़ायें। इन पर मेहंदी, हल्दी तथा सिंदूर चढ़ायें और इनका पूजन भी कलश और गणेशजी के पूजन की तरह ही करें। अंत में मंगला गौरी का पूजन करें।
मंगला गौरी के पूजन के लिए एक थाली में चकला रख लें और उस पर मंगला गौरी की मिट्टी की मूर्ति बिठायें अथवा मिट्टी की पांच डलियां रखकर उन्हें मंगला गौरी का प्रतीक मान लें। आटे की लोई बनाकर रख लें। सबसे पहले मंगला गौरी को पंचामृत (जल, दूध, घी, दही और चीनी का मिश्रण) से स्नान करायें। इसके उपरांत उन्हें वस्त्र पहनाकर नथ, काजल, चंदन, हल्दी, सिंदूर, मेहंदी, आलता आदि से उनका श्रंृगार करें।
मंगला गौरी के श्रंृगार के पश्चात 16 किस्म के फूल, 16 मालाएं, 16 किस्म के पत्ते, 16 लौंग, 16 फल, 16 इलायची, 16 आटे के लड्डू, 16 जीरे के दाने, 16 धनिया के दाने, सात तरह का अनाज 16 बार, 5 प्रकार के मेवे, रोली, मेहंदी, काजल, सिंदूर, कंघा, शीशा, तेल, 16 चूड़ियां, एक रुपये का सिक्का तथा दक्षिणा चढ़ाकर मंगला गौरी की कथा सुनें। चौमुखी दीपक बनाकर उसमें 16-16 तार की चार बत्तियां बनायें और कपूर से आरती उतारें। इसके बाद 16 लड्डुओं का दान (भायना) अपनी सास को देकर उनसे आशीर्वाद लें। इसके पश्चात बिना नमक के एक ही अनाज की रोटी का एक समय भोजन करने का विधान है। दूसरे दिन मंगला गौरी का विसर्जन समीप के कुएं, नदी, तालाब अथवा पोखर आदि में करने के पश्चात भोजन करें।
उद्यापन विधि :
मंगला गौरी ऋात का उद्यापन सोलह या बीस मंगलवार का ऋात करने के पश्चात करना चाहिये। उद्यापन के दिन कुछ न खायें। मेहंदी लगाकर पूजा में बैठें। पूजा चार ब्राह्मणों से करायें। एक चौकी पर चारों कोनों में केले के खंभ लगाकर मंडप पर एक चंदोवा बांधें। कलश पर कटोरी रखकर उसमें मंगलगौरी की स्थापना करें। साड़ी, नथ तथा सुहाग की सभी वस्तुएं पूजा में रखें। हवन के उपरांत कथा सुनकर आरती करें। चांदी के बर्तन में आटे के लड्डू, रुपया तथा साड़ी सासूजी को देकर उनके पैर छूकर आशीर्वाद लें। पूजा कराने वाले पंडित को भी भोजन कराकर धोती और अंगोछा देना चाहिये। अगले दिन सोलह ब्राह्मणों को जोड़े सहित भोजन कराकर धोती, अंगोछा तथा ब्राह्मणिनों को सुहाग की पिटारी में श्रंृगार का सामान तथा साड़ी रखकर दें। इसके पश्चात भोजन कर उद्यापन का पारायण करें।
श्रावण मास का भारतीय स्त्रियों के जीवन में विशेष महत्व है। इस महीने में कजली तीज, श्रावण के सोमवार इत्यादि का उपवास अधिकतर भारतीय महिलाएं करती हैं। भाई और बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन का त्यौहार भी श्रावण के ही महीने में पड़ता है, जिसका इंतज़ार छोटी बच्चियां हों या युवा-अधेड़ महिलाएं सभी को रहता है। श्रावण मास में झूले झूलने का आनंद भी गांव की अल्हड़ गोरियां खूब उठाती हैं और झूलों पर जमकर पींगें भरती हैं। इस मौके पर उनके कंठ से खुशी के गीत फूट पड़ते हैं, जो उनकी खुशी तथा उमंग को व्यक्त करते हैं।
इसी श्रावण मास में महिलाओं के लिए एक और महत्वपूर्ण ऋात पड़ता है आदिशिक्त मां गौरी का मंगला गौरी ऋात, जो विश्व mangla-gouriके सर्जक तथा संहारक आदिदेव महादेव की अर्धांगिनी हैं। चूंकि यह ऋात मंगलवार को किया जाता है, इसलिए इसका नाम मंगला गौरी ऋात पड़ा। प्राय: प्रत्येक स्त्री अपने सुखी जीवन की मंगल कामना के ध्येय से इस ऋात को करती है और मां गौरी का ऋात-पूजन कर उनको प्रसन्न करके अपने जीवन को निर्विघ्न और सफल बनाने की कामना करती है।
मंगला गौरी ऋात का विधान :
इस ऋात के दिन प्रात: नहा-धोकर एक चौकी पर सफेद तथा लाल कपड़ा बिछायें। सफेद कपड़े पर नवग्रहों के नाम की चावल की नौ ढेरियां (नौ ग्रह) बनायें तथा लाल कपड़े पर गेहूं से षोडश मातृका की सोलह ढेरियां बनायें। उसी चौकी के एक तरफ चावल तथा फूल रखकर गणेश जी की स्थापना करें। चौकी के एक कोने पर गेहूं की छोटी सी ढेरी रखकर उस पर जल से भरा कलश रखें। कलश के मुंह पर आम की एक छोटी सी शाखा (टहनी) डाल दें। फिर आटे का एक चार मुंहवाला दीपक और सोलह धूपबत्ती जलायें। सबसे पहले गणेशजी का पूजन करें। उस पर चंदन, रोली, पान, सुपारी, सिंदूर, पंचामृत, जनेऊ, लौंग, पान, चावल, फूल, इलायची, बेलपत्र, फल, मेवा तथा दक्षिणा चढ़ाकर गणेशजी की आरती करें। इसके बाद कलश का पूजन करें।
एक मिट्टी के सकोरे में आटा रखकर उस पर सुपारी रखें और दक्षिणा आटे में दबा दें। फिर बेल पत्र चढ़ायें। अब गणेशजी की भांति ही सभी सामग्री के साथ कलश का पूजन करें, परंतु ध्यान रहे कलश पर सिंदूर तथा बेल पत्र न चढ़ायें। इसके उपरांत नौग्रहों (चावल की नौ ढेरियों) की पूजा करें। इन पर रोली तथा जनेऊ न चढ़ायें। इन पर मेहंदी, हल्दी तथा सिंदूर चढ़ायें और इनका पूजन भी कलश और गणेशजी के पूजन की तरह ही करें। अंत में मंगला गौरी का पूजन करें।
मंगला गौरी के पूजन के लिए एक थाली में चकला रख लें और उस पर मंगला गौरी की मिट्टी की मूर्ति बिठायें अथवा मिट्टी की पांच डलियां रखकर उन्हें मंगला गौरी का प्रतीक मान लें। आटे की लोई बनाकर रख लें। सबसे पहले मंगला गौरी को पंचामृत (जल, दूध, घी, दही और चीनी का मिश्रण) से स्नान करायें। इसके उपरांत उन्हें वस्त्र पहनाकर नथ, काजल, चंदन, हल्दी, सिंदूर, मेहंदी, आलता आदि से उनका श्रंृगार करें।
मंगला गौरी के श्रंृगार के पश्चात 16 किस्म के फूल, 16 मालाएं, 16 किस्म के पत्ते, 16 लौंग, 16 फल, 16 इलायची, 16 आटे के लड्डू, 16 जीरे के दाने, 16 धनिया के दाने, सात तरह का अनाज 16 बार, 5 प्रकार के मेवे, रोली, मेहंदी, काजल, सिंदूर, कंघा, शीशा, तेल, 16 चूड़ियां, एक रुपये का सिक्का तथा दक्षिणा चढ़ाकर मंगला गौरी की कथा सुनें। चौमुखी दीपक बनाकर उसमें 16-16 तार की चार बत्तियां बनायें और कपूर से आरती उतारें। इसके बाद 16 लड्डुओं का दान (भायना) अपनी सास को देकर उनसे आशीर्वाद लें। इसके पश्चात बिना नमक के एक ही अनाज की रोटी का एक समय भोजन करने का विधान है। दूसरे दिन मंगला गौरी का विसर्जन समीप के कुएं, नदी, तालाब अथवा पोखर आदि में करने के पश्चात भोजन करें।
उद्यापन विधि :
मंगला गौरी ऋात का उद्यापन सोलह या बीस मंगलवार का ऋात करने के पश्चात करना चाहिये। उद्यापन के दिन कुछ न खायें। मेहंदी लगाकर पूजा में बैठें। पूजा चार ब्राह्मणों से करायें। एक चौकी पर चारों कोनों में केले के खंभ लगाकर मंडप पर एक चंदोवा बांधें। कलश पर कटोरी रखकर उसमें मंगलगौरी की स्थापना करें। साड़ी, नथ तथा सुहाग की सभी वस्तुएं पूजा में रखें। हवन के उपरांत कथा सुनकर आरती करें। चांदी के बर्तन में आटे के लड्डू, रुपया तथा साड़ी सासूजी को देकर उनके पैर छूकर आशीर्वाद लें। पूजा कराने वाले पंडित को भी भोजन कराकर धोती और अंगोछा देना चाहिये। अगले दिन सोलह ब्राह्मणों को जोड़े सहित भोजन कराकर धोती, अंगोछा तथा ब्राह्मणिनों को सुहाग की पिटारी में श्रंृगार का सामान तथा साड़ी रखकर दें। इसके पश्चात भोजन कर उद्यापन का पारायण करें।
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