Tuesday, 1 July 2014

इलाहबाद त्रिवेणी संगम | Allahabad Triveni Sangam

.उत्तर प्रदेश में गंगा व यमुना नदी के किनारे बसा इलाहाबाद भारत का प्राचीन पवित्र लोकप्रिय तीर्थस्थल है. विभिन्न धार्मिक ग्रन्थों में इस स्थल के बारे में विस्तार पूर्वक उल्लेख मिलता है. रामायण एवं महाभारत में इस स्थान को प्रयाग के नाम से संबोधित किया गया है. हिन्दुओं के लिए इस शहर का विशेष महत्व रहा है गंगा, यमुना सरस्वती नदियों का यह संगम स्थल माना जाता है, प्रति वर्ष यहां जनवरी -फरवरी में बहुत बड़ा मेला लगता है जो माघ मेला कहलाता हैं इस मेले मे देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु स्नान करने के लिए आते हैं व हर 12 साल बाद यहां कुंभ का मेला आयोजित किया जाता है. इतने बडे आयोजनों का गवाह यह स्थल सचमुच मे अतुलनीय है.

प्रयाग तीर्थराज | Prayag Pilgrimage

इलाहबाद (प्रयाग) को पुराणों में तीर्थराज कहा गया है अर्थात सभी तीर्थों मे सबसे प्रमुख. गंगा, यमुना व सरस्वति के संगम नाम से भी अभिहित किया गया है. पुराणोक्ति यह हैं कि प्रजापति ने आहुति की तीन वेदियों का निर्माण करवाया कुरुक्षेत्र, प्रयाग व गया जिसमें से प्रयाग को मध्यम वेदी का स्थान प्राप्त है मान्यता है कि यहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती सरिताओं का मेल हुआ था. संगम के सम्बन्ध में ॠग्वेद में कहा गया है कि जहाँ कृष्ण और श्वेत जल वाली जल धाराओं का संगम होता है वहाँ स्नान करने से मनुष्य मोक्ष को पाता है व स्वर्ग का स्थान मिलता है तथा जो प्रयाग का दर्शन व उसका नामोच्चारण करता है तथा संगम स्थल जल में स्नान करता है व उस स्थल की पवित्र मिट्टी से अपने माथे पर तिलक करता है वह पापमुक्त हो जाता है यहां देह त्याग करने वाला पुन: संसार में उत्पन्न नहीं होता मोक्ष को पाता है.

त्रिवेणी संगम धारा | Triveni Sangam Stream

त्रिवेणी संगम गंगा यमुना सरस्वती के मिलन को कहा जाता है इस संगम स्थल को ओंकार के नाम से भी अभिहित किया गया है. यह शब्द परमेश्वर की ओर रहस्यात्मक संकेत करता है और यही त्रिवेणी का भी सूचक है नरसिंहपुराण में विष्णु भगवान को प्रयाग में योगमूर्ति के रूप में स्थित बताया गया है इसके साथ ही मत्स्य पुराण के अनुसार शिव के रुद्र रूप द्वारा एक कल्प के उपरान्त प्रलय करने पर भी प्रयाग स्थल नष्ट नहीं होता तथा उस समय उत्तरी भाग में ब्रह्मा छद्म वेश में, विष्णु वेणी माधव रूप में व भगवान  शिव वट वृक्ष के रूप में आवास करते हैं एवं देव, सिद्धऋषि मुनि पापशक्तियों से प्रयाग की रक्षा करते हैं अत: इसीलिए मत्स्य पुराण में तीर्थयात्री को प्रयाग मे एक मास निवास करने तथा देवताओं और पितरों की पूजा करने का विधान भी है. हिन्दुओं के लिए इस शहर का विशेष महत्व है.

प्रयाग संगम पौराणिक उल्लेख | Ancient Description

संगम स्थल जहां भारत की पवित्र नदियों गंगा-यमुना व सरस्वति का संगम होता है. हालांकि सरस्वती दिखती नहीं पर लोगों की मान्यता है कि वह अदृश्य रूप में हो कर गंगा व यमुना की धाराओं के नीचे बहती है इसी लिए यहां के संगम स्थल को त्रिवेणी संगम कहलाता है. त्रिवेणी संगम के धार्मिक महत्व के बारे में ऐसी धारणा है कि समुंद्र मंथन के समय जब अमृत कलश प्राप्त हुआ तब देवता लोग इस अमृत कलश को असुरों से बचाने के प्रयास मे लगे थे इसी खींचातानी में अमृत कि कुछ बूंदें धरती पर गिरी थी और जहां-जहां भी यह बूंदें पडी उन स्थानों पर कुंभ का मेला लगता है यह स्थान थे उज्जैन, हरिद्वार, नासिक व प्रयाग.
इस स्थान पर कलश से अमृत की बूदें छ्लकी थी इसी कारण लोगों का विश्वास है कि संगम में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते है व स्वर्ग की प्राप्ति होती है. दूर-दूर से  श्रद्धालु लोग इस पावन तीर्थयात्रा के लिये यहां आते हैं पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं तथा पूजा-अर्चना करते हैं. अन्य उल्लेखों द्वारा भगवान ब्रह्मा ने यहां प्राकृष्ट यज्ञ किया गया था जिस कारण इलाहाबाद को प्रयाग नाम से संबोधीत किया गया.  इलाहाबाद को तीर्थराज प्रयागराज के नाम से भी पुकारा जाता है अर्थात सभी तीर्थों का राजा. कहते हैं कि भगवान श्रीराम वनवास के समय इलाहाबाद मे पधारे.

कुंभ मेला / माघ मेला | Kumbh Mela / Magh Mela

इलाहबाद के संगम स्थल पर हिन्दुओं का धार्मिक एवं सांस्कृतिक मेले का आयोजन किया जाता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार मकर संक्रांति के पावन अवसर के दिन माघ मेला आयोजित होता है इस अवसर पर संगम स्थल पर स्नान करने का बहुत महत्व होता है. यहां के माघ मेले की ख्याति पूरे विश्व में फैली हुई है तथा इसी के चलते इस मेले के दौरान संगम की रेती भूमी पर तंबुओं का एक शहर बस जाता है.
प्रत्येक वर्ष माघ के महीने में जब सूर्य मकर राशि में होता है तब सभी विचारों, मत-मतांतरों के साधु-संतों सहित सभी आम जन आदि लोग त्रिवेणी में स्नान करके पुण्य के भागीदार बनते हैं. इस दौरान छह प्रमुख स्नानपर्व होते हैं इसके तहत पौष पूर्णिमा, मकर संक्रान्ति, मौनी अमावास्या, बसंत पंचमी, माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि  के स्नानपर्व प्रमुख हैं. पौराणिक मान्यताओं के आधार पर कहा जाता है की यहां आने वालों का स्वागत स्वयं भगवान करते हैं.
हिन्दुओं के लिए इस शहर का विशेष महत्व है प्रत्येक बारह वर्ष पश्चात यहाँ कुम्भ के मेले का आयोजन होता है. इसके साथ ही इलाहबाद और हरिद्वार में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ मेले का भी आयोजन होता है. कुम्भ का मेला धार्मिक गतिविधियों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों तथा पारंपरिक विचार धाराओं का गवाह बनता है
धार्मिक महत्त्व के अलावा यह मेले विश्व के प्रमुख सबसे बड़े मेले होते हैं जहां पर देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु स्नान करने के लिए आते हैं लगता है मानो एक नया शहर ही बस गया हो जहां पर विश्व का सबसे बडा़ जमावड़ा होता है त्रिवेणी के संगम में स्नान करने की बहुत बड़ी महत्ता है,पर इस स्थान की तीसरी नदी सरस्वती अब से हजारों वर्ष पहले लुप्त हो चुकी है आर्यकाल में यह स्थान प्रयाग कहा जाता था और आज भी इसको प्रयाग कहते हैं. प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग भी यहां आया था और उसने अपने संस्मरणों में यहां की काफी विस्तार से चर्चा की है.

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