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ॐ इस एकाक्षर मंत्र में शिव प्रतिष्ठित हैं.
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“ॐ नमः शिवाय” मंत्र भगवान शिव की महिमा एवं उनके स्वरुप को दर्शाता है. ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप भक्त के हृदय की गहराइयों में पहुंचकर उसका साक्षात्कार शिव से कराता है. यह मंत्र भक्तों का सरल मंत्र है यह मंत्र पाँच अक्षरों का प्रभुत्व दर्शाता है अतः इसे पंचाक्षर स्तोत्र कहते हैं. “ॐ” के प्रयोग से यह मंत्र छः अक्षर का बनता है. ॐ इस एकाक्षर मंत्र में शिव प्रतिष्ठित हैं. यह मंत्र में पंचब्रह्मरूपधारी भगवान शिव इसमें वाच्य और वाचक भाव से विराजमान हैं वीरशैव मत अष्टावर्ण धारण मे पंचकाक्षरी मंत्र एकहै। संकेत -पद्धति ग्रंथ मे ||माननात् त्राण धर्मासौ मंत्रोयं परिकिर्तः ॥ मानसिक जपरूप तर्क मन से साधक को संरक्षण करने के कारण इसे मंत्र कहा जाता है इसे रक्षा कवच मानाजाता है इसी मत को पुष्टि करते हुवे योगशिखोपनिषत मे कहा ग़या है ” मननात् तृणाच्चैव मद्रूपस्यावबोधनात् मन्त्रमित्त्युच्यते ” मनन करते साधक को जनन मरणात्मक प्रपंच से पार करने के कारण मन्त्र कह जता है चन्द्र ज्ञान अगम मे क्रियापद अषटम पटल मे बृहस्पति को बोलते हूवे अनंत रूद्र कहते है कि ” अदौ नमः प्रयोक्तव्यम् शिवायेति ततः परम । सैषा पंचाक्षरी विद्या सर्वश्रुतिशिरोगता ॥ शब्द जातस्य सर्वस्य बीजभूता समासतः । आदौशिवमुखोद्गीर्णा स तस्मैवात्मवाचिका ॥ इसश्लोक क भावार्थ य है :- प्रथम नमः पद रख के नंतर शिवाय पद क प्रयोगको पंचाक्षरी विद्या कहाजाता है सर्व श्रुतिओं के शिरोभाग इस क स्थान है सक्षिप्त मे यह पंचाक्षरी मंत्र सभी प्रकार के विद्याओं का जननी है सृष्टि के प्रारंभ मे शिव के मुख से निकली यह विद्या (मंत्र) शिव जि के निज स्वरुप है।नमः शब्द वदेत् पूर्वं शिवायेति ततः परम । मंत्रः पञ्चाक्षरो ह्येषः सर्वश्रुतिशिरोगतः ॥ वीरशैव मत प्रतिपादक भाष्य श्री सिद्धांत शिखामणि मे पंचाक्षरी मंत्र उपदेश करते हुव
ॐ इस एकाक्षर मंत्र में शिव प्रतिष्ठित हैं.
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“ॐ नमः शिवाय” मंत्र भगवान शिव की महिमा एवं उनके स्वरुप को दर्शाता है. ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप भक्त के हृदय की गहराइयों में पहुंचकर उसका साक्षात्कार शिव से कराता है. यह मंत्र भक्तों का सरल मंत्र है यह मंत्र पाँच अक्षरों का प्रभुत्व दर्शाता है अतः इसे पंचाक्षर स्तोत्र कहते हैं. “ॐ” के प्रयोग से यह मंत्र छः अक्षर का बनता है. ॐ इस एकाक्षर मंत्र में शिव प्रतिष्ठित हैं. यह मंत्र में पंचब्रह्मरूपधारी भगवान शिव इसमें वाच्य और वाचक भाव से विराजमान हैं वीरशैव मत अष्टावर्ण धारण मे पंचकाक्षरी मंत्र एकहै। संकेत -पद्धति ग्रंथ मे ||माननात् त्राण धर्मासौ मंत्रोयं परिकिर्तः ॥ मानसिक जपरूप तर्क मन से साधक को संरक्षण करने के कारण इसे मंत्र कहा जाता है इसे रक्षा कवच मानाजाता है इसी मत को पुष्टि करते हुवे योगशिखोपनिषत मे कहा ग़या है ” मननात् तृणाच्चैव मद्रूपस्यावबोधनात् मन्त्रमित्त्युच्यते ” मनन करते साधक को जनन मरणात्मक प्रपंच से पार करने के कारण मन्त्र कह जता है चन्द्र ज्ञान अगम मे क्रियापद अषटम पटल मे बृहस्पति को बोलते हूवे अनंत रूद्र कहते है कि ” अदौ नमः प्रयोक्तव्यम् शिवायेति ततः परम । सैषा पंचाक्षरी विद्या सर्वश्रुतिशिरोगता ॥ शब्द जातस्य सर्वस्य बीजभूता समासतः । आदौशिवमुखोद्गीर्णा स तस्मैवात्मवाचिका ॥ इसश्लोक क भावार्थ य है :- प्रथम नमः पद रख के नंतर शिवाय पद क प्रयोगको पंचाक्षरी विद्या कहाजाता है सर्व श्रुतिओं के शिरोभाग इस क स्थान है सक्षिप्त मे यह पंचाक्षरी मंत्र सभी प्रकार के विद्याओं का जननी है सृष्टि के प्रारंभ मे शिव के मुख से निकली यह विद्या (मंत्र) शिव जि के निज स्वरुप है।नमः शब्द वदेत् पूर्वं शिवायेति ततः परम । मंत्रः पञ्चाक्षरो ह्येषः सर्वश्रुतिशिरोगतः ॥ वीरशैव मत प्रतिपादक भाष्य श्री सिद्धांत शिखामणि मे पंचाक्षरी मंत्र उपदेश करते हुव
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