Tuesday, 1 July 2014

श्रीगणेश बहुला चतुर्थी व्रत । Shri Ganesha Chaturthi Vrat

यह व्रत भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है.इस व्रत को श्रीगणेश बहुला चतुर्थी व्रत भी कहा जाता है.

बहुला व्रत का महत्व | Importance of Bahula Fast

इस व्रत को स्त्रियाँ अपने पुत्रों की रक्षा के लिए मनाती हैं. इस व्रत को रखने से संतान का सुख बढ़ता है. संतान की लम्बी आयु की कामना की जाती है. इस दिन गाय माता की पूजा की जाती है. इस दिन दूध तथा दूध से बने पदार्थों का उपयोग नहीं किया जाता है. इस दिन गाय के दूध पर केवल उसके बछडे़ का अधिकार माना जाता है.

व्रत रखने की विधि | Fast – Procedure

इस दिन सुबह सवेरे स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र पहने जाते है. पूरा दिन निराहार रहते हैं. संध्या समय में गाय माता तथा उसके बछडे़ की पूजा की जाती है. भोजन में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं. जिन खाद्य पदार्थों को बनाया जाता है उन्हीं का संध्या समय में गाय माता को भोग लगाया जाता है. देश के कुछ भागों में जौ तथा सत्तू का भी भोग लगाया जाता है. बाद में इसी भोग लगे भोजन को स्त्रियाँ ग्रहण करती हैं. इस दिन गाय तथा सिंह की मिट्टी की मूर्ति का पूजन किया जाता है.
संध्या समय में पूरे विधि-विधान से गणेश जी की पूजा की जाती है. रात्रि में चन्द्रमा के उदय होने पर उन्हें अर्ध्य दिया जाता है. कई स्थानों पर शख्ह में दूध, सुपारी, गंध तथा अक्षत(चावल) से भगवान श्रीगणेश और चतुर्थी तिथि को भी अर्ध्य दिया जाता है. इस प्रकार इस संकष्ट चतुर्थी का पालन जो भी व्यक्ति करता है उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं. व्यक्ति को मानसिक तथा शारीरिक कष्टों से छुटकारा मिलता है. जो व्यक्ति संतान के लिए व्रत नहीं रखते हैं उन्हें संकट, विघ्न तथा सभी प्रकार की बाधाएँ दूर करने के लिए इस व्रत को अवश्य करना चाहिए.

बहुला चतुर्थी व्रत कथा | Bahula Chaturthi Katha in Hindi

इस व्रत की कथा इस प्रकार है कि किसी ब्राह्मण के घर में बहुला नामक एक गाय थी. बहुला गाय का एक बछडा़ था. बहुला को संध्या समय में घर वापिस आने में देर हो जाती तो यह बछडा़ व्याकुल हो उठता था. एक दिन बहुला घास चरते हुए अपने झुण्ड से बिछड़ गई और जंगल में पहुंच गई. जंगल में वह अपने घर लौटने का रास्ता खोज रही थी कि अचानक उसके सामने एक खूंखार शेर आ गया. शेर ने बहुला पर झपट्टा मारा. तब बहुला ने उससे विनती करने लगी कि उसका छोटा-सा बछडा़ सुबह से उसकी राह देख रहा है. वह भूखा है और दूध मिलने की प्रतीक्षा कर रहा है. आप कृपया कर मुझे जाने दें. मैं उसे दूध पिलाकर वापिस आ जाऊंगी तब आप मुझे खाकर अपनी भूख को शांत कर लेना.
सिंह को बहुला पर विश्वास नहीं था कि वह वापिस आएगी. तब बहुला ने सत्य और धर्म की शपठ ली और सिंहराज को विश्वास दिलाया कि वह वापिस जरुर आएगी. सिंह से बहुला को उसके बछडे़ के पास वापिस जाने दिया. बहुला शीघ्रता से घर पहुंची. अपने बछडे़ को शीघ्रता से दूध पिलाया और उसे बहुत चाटा-चूमा. उसके बाद अपना वचन पूरा करने के लिए सिंहराज के समक्ष जाकर खडी़ हो गई. सिंह को उसे अपने सामने देखकर बहुत हैरानी हुई. बहुला के वचन के सामने उसने अपना सिर झुकाया और खुशी से बहुला को वापिस घर जाने दिया. बहुला कुशलता से घर लौट आई और प्रसन्नता से अपने बछडे़ के साथ रहने लगी. तभी से बहुला चौथ का यह व्रत रखने की परम्परा चली आ रही है.
एक अन्य कथा के अनुसार ब्रज में कामधेनु के कुल की एक गाय बहुला थी. यह नन्दकुल की सभी गायों में सर्वश्रेष्ठ गाय थी. एक बार भगवान कृष्ण ने बहुला की परीक्षा लेने की सोची. एक दिन जब बहुला वन में चर रही थी तभी सिंह के रुप में श्रीकृष्ण भगवान ने उन्हें दबोच लिया. बाकी कीम कथा ऊपर लिखित कथा के आधार पर है. बाद में कृष्ण भगवान ने कहा कि बहुला तुम्हारे प्रभाव से और सत्य के कारण कलयुग में घर-घर में तुम्हारा पूजन किया जाएगा. इसलिए आज भी गायों की पूजा की जाती है और गौ मता के नाम से पुकारी जाती हैं.

No comments:

Post a Comment