Saturday, 19 July 2014

●~● क्यूं मां लक्ष्मी ने भगवान विष्णु की बात ना मानी और कर दिया एक पाप, ●~●

परमेश्वर के तीन मुख्य स्वरूपों में से एक भगवान विष्णु का नाम स्वयं ही धन की देवी मां लक्ष्मी के साथ लिया जाता है. शास्त्रों में विख्यात कथाओं के अनुसार मां लक्ष्मी हिन्दू धर्म में धन, सम्पदा, शान्ति और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं. माता लक्ष्मी विष्णु जी की अर्धांगिनी हैं. सुख व समृद्धि की प्रतीक मां लक्ष्मी व भगवान विष्णु को युगों-युगों से एक साथ देखा गया है.

यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन में धन का वास चाहता है तो हमेशा ही मां लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु की आराधना अवश्य करे. इन दोनों का रिश्ता काफी शुद्ध व सर्वश्रेष्ठ माना जाता है परंतु ऐसा क्या हुआ था जो लक्ष्मी जी के कारण भगवान विष्णु की आंखें भर आईं? पुराणों में विख्यात एक कथा के अनुसार लक्ष्मी जी की किस बात से विष्णु जी इतने निराश हो गए?

पुराणों में लिखी एक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु जी शेषनाग पर बैठे-बैठे उदास हो गए और उन्होंने धरती पर जाने का विचार बनाया. धरती पर जाने का मन बनाते ही विष्णु जी जाने की तैयारियों में लग गए. अपने स्वामी को तैयार होता देख कर लक्ष्मी मां ने उनसे पूछा, “स्वामी, आप कहां जाने की तैयारी में लगे हैं?” जिसके उत्तर में विष्णु जी ने कहा, “हे लक्ष्मी, मैं धरती लोक पर घूमने जा रहा हूं.”

यह सुन मां लक्ष्मी जी का भी धरती पर जाने का मन हुआ और उन्होंने श्रीहरि से इसकी आज्ञा मांगी. मां लक्ष्मी द्वारा प्रार्थना करने पर भगवान विष्णु बोले, “तुम मेरे साथ चल सकती हो, लेकिन एक शर्त पर, तुम धरती पर पहुंच कर उत्तर दिशा की ओर बिलकुल मत देखना, तभी मैं तुम्हें अपने साथ लेकर जाऊंगा.” यह सुनते ही माता लक्ष्मी ने हां कह दिया और विष्णु जी के साथ धरती लोक जाने के लिए तैयार हो गईं.

मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु सुबह-सुबह धरती पर पहुंच गए. जब वे पहुंचे तब अभी सूर्य देवता उदय हुए ही थे, रात्रि में बरसात हुई थी जिस कारण चारों ओर हरियाली ही हरियाली थी. धरती बेहद सुन्दर दिख रही थी जिसके फलस्वरूप  मां लक्ष्मी मन्त्र मुग्ध हो कर धरती के चारों ओर देख रही थीं और भूल गईं कि पति को क्या वचन दे कर आई हैं. अपनी नजर घुमाते हुए उन्होंने कब उत्तर दिशा की ओर देखा उन्हें पता ही नहीं चला.

मन ही मन में मुग्ध हुई मां लक्ष्मी जी ने जब उत्तर दिशा की ओर देखा तो उन्हें एक सुन्दर बागीचा नजर आया. उस ओर से भीनी-भीनी खुशबू आ रही थी. बागीचे में बहुत ही सुन्दर-सुन्दर फूल खिले थे. फूलों को देखते ही मां लक्ष्मी बिना सोचे समझे उस खेत में चली गईं और एक सुंदर सा फूल तोड़ लाईं.

फूल तोड़ने के पश्चात जैसे ही मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के पास वापस लौट कर आईं तो भगवान विष्णु की आंखों में आंसू थे. मां लक्ष्मी के हाथ में फूल देख विष्णु बोले, “कभी भी किसी से बिना पूछे उसका कुछ भी नहीं लेना चाहिए” और साथ ही उन्हें विष्णु जी को दिया हुआ वचन भी याद दिलाया.

मां लक्ष्मी को अपनी भूल का जब आभास हुआ तो उन्होंने भगवान विष्णु से इस भूल की क्षमा मांगी. विष्णु ने कहा कि तुमने जो भूल की है, उस की सजा तो तुम्हें अवश्य मिलेगी? जिस माली के खेत से तुमने बिना पूछे फूल तोड़ा है, यह एक प्रकार की चोरी है, इसीलिए अब तुम तीन वर्ष तक माली के घर नौकर बन कर रहो, उस के बाद मैं तुम्हें बैकुण्ठ में वपस बुलाऊंगा.ं

भगवान विष्णु का आदेश मां लक्ष्मी ने चुपचाप सर झुका कर मान लिया, जिसके बाद मां लक्ष्मी ने एक गरीब औरत का रूप धारण किया और उस खेत के मालिक के घर गईं. माधव नाम के उस माली का एक झोपड़ा था जहां माधव की पत्नी, दो बेटे और तीन बेटियां रहती थीं.

मां लक्ष्मी जब एक साधारण औरत बन कर माधव के झोपड़े पर गईं तो माधव ने पूछा, ‘बहन तुम कौन हो?’ तब मां लक्ष्मी ने कहा, मैं एक गरीब औरत हूं, मेरी देखभाल करने वाला कोई नहीं, मैंने कई दिनों से खाना भी नहीं खाया, मुझे कोई भी काम दे दो. मैं तुम्हारे घर का काम कर दूंगी और इसके बदले में आप मुझे अपने घर के एक कोने में आसरा दे दो.

माधव बहुत ही अच्छे दिल का मालिक था, उसे दया आ गई, लेकिन उस ने कहा, बहन मैं तो बहुत ही गरीब हूं, मेरी कमाई से मेरे घर का खर्च काफी कठिनाई से चलता है, लेकिन अगर मेरी तीन की जगह चार बेटियां होतीं तो भी मुझे गुजारा करना था, अगर तुम मेरी बेटी बन कर जैसा रूखा-सूखा हम खाते हैं उसमें खुश रह सकती हो तो बेटी अन्दर आ जाओ.

माधव ने मां लक्ष्मी को अपने झोपड़े में शरण दी और मां लक्ष्मी तीन साल उस माधव के घर पर नौकरानी बन कर रहीं. कथा के अनुसार कहा जाता है कि जिस दिन मां लक्ष्मी माधव के घर आईं थी उसके दूसरे दिन ही माधव को फूलों से इतनी आमदनी हुई कि शाम को उसने एक गाय खरीद ली. फिर धीरे-धीरे माधव ने जमीन खरीद ली और सबने अच्छे-अच्छे कपड़े भी बनवा लिए. कुछ समय बाद माधव ने एक बडा पक्का घर भी बनवा लिया. माधव हमेशा सोचता था कि मुझे यह सब इस महिला के आने के बाद मिला है, इस बेटी के रूप में मेरी किस्मत आ गई है.

एक दिन माधव जब अपने खेतों से काम खत्म करके घर आया तो उसने अपने घर के द्वार पर गहनों से लदी एक देवी स्वरूप औरत को देखा. जब निकट गया तो उसे आभास हुआ कि यह तो मेरी मुंहबोली चौथी बेटी यानि वही औरत है. कुछ समय के बाद वह समझ गया कि यह देवी कोई और नहीं बल्कि स्वयं मां लक्ष्मी हैं.

यह जानकर माधव बोला, “हे मां हमें क्षमा करें, हमने आपसे अनजाने में ही घर और खेत में काम करवाया, हे मां यह कैसा अपराध हो गया, हे मां हम सब को माफ़ कर दे.”

यह सुन मां लक्ष्मी मुस्कुराईं और बोलीं, “हे माधव तुम बहुत ही अच्छे और दयालु व्यक्त्ति हो, तुमने मुझे अपनी बेटी की तरह रखा, अपने परिवार का सदस्य बनाया, इसके बदले मैं तुम्हें वरदान देती हूं कि तुम्हारे पास कभी भी खुशियों की और धन की कमी नहीं रहेगी, तुम्हें सारे सुख मिलेंगे जिसके तुम हकदार हो. इसके पश्चात मां लक्ष्मी अपने स्वामी के द्वारा भेजे रथ में बैठकर वैकुण्ठ चली गईं.

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