Monday, 7 July 2014

(1) उच्च स्तरों पर साधना
क्योंकि फालुन गोंग की साधना बहुत ऊंचे स्तरों पर होती है, गोंग बहुत तेजी से उत्पन्न होता है। महान साधना मार्ग बहुत सरल और सुगम होता है। फालुन गोंग में कुछ ही गति-क्रियायें हैं। किन्तु पूर्ण रूप से देखा जाए तो इससे शरीर के सभी पहलू संचालित होते है, जिसमें वे वस्तुएं भी सम्मिलित हैं जो अभी उत्पन्न होनी हैं। जब तक व्यक्ति का शिनशिंग बढ़ता रहता है, उसका गोंग तेजी से बढ़ेगा; इसमें न तो किसी संकल्प युक्त प्रयास की आवश्यकता होती है, न किसी विशेष प्रणाली की, और न ही गलाने की भट्टी लगाकर एकत्रित रसायनों से तान बनाने की या अग्नि उत्पन्न करने की और न ही रसायन एकत्रित करने की। मानसिक उद्देश्य के मार्गदर्शन पर निर्भर होना बहुत जटिल हो सकता है और इससे व्यक्ति सरलता से भटक सकता है। हम यहां सबसे सुगम और सर्वोत्ताम साधना मार्ग उपलब्ध कराते हैं, किन्तु सबसे कठिन भी। दूसरी पध्दतियों में किसी साधक को दुग्ध-श्वेत शरीर अवस्था में पहुंचने के लिए हो सकता है दस वर्षों से भी अधिक लगे, या कई दशाब्दियां, या उससे भी अधिक। किन्तु हम आपको इस स्तर पर तुरन्त ले आते हैं। हो सकता है आप इस स्तर से आगे निकल आए हों और आपको पता भी न लगा हो। हो सकता है कि यह केवल कुछ घंटे ही रहा हो। एक दिन ऐसा होगा जब आप बहुत संवेदनशील अनुभव करेंगे, और केवल कुछ ही देर बाद आप उतना संवेदनशील अनुभव नही करेंगे। वास्तव में, तब आप एक महत्वपूर्ण स्तर के आगे निकल गए होंगे।
(2) गोंग का प्रकटीकरण
एक बार फालुन गोंग शिष्यों के भौतिक शरीर को व्यवस्थित कर दिए जाने के बाद वे उस स्थिति में पहुंच जाते हैं जो दाफा[14] साधना के लिए उपयुक्त हैं : दुग्ध-श्वेत शरीर की अवस्था। गोंग इस स्थिति की प्राप्ति के बाद ही विकसित होगा। लोग जिनके पास ऊंचे स्तर का त्येनमू है वे देख सकते हैं किगोंग अभ्यासी की त्वचा के सतह पर विकसित होता है और उसके पश्चात उसके शरीर में सोख लिया जाता है। गोंग की उत्पत्ति व अवशोषण का यह क्रम बार-बार होता रहता है, एक स्तर से दूसरे स्तर, कई बार अति शीघ्रता से। यह प्रथम चरण का गोंग है। प्रथम चरण के बाद, अभ्यासी का शरीर साधारण शरीर नहीं रह जाता। दुग्ध-श्वेत शरीर की अवस्था तक पहुंचने के बाद अभ्यासी का शरीर फिर कभी रोगग्रस्त नहीं होगा। इधर-उधर होने वाली पीड़ा या किसी विशेष भाग में होने वाली बेचैनी रोग नहीं है, हालांकि यह वैसा ही जान पड़ती है : यह कर्म के कारण होता है। दूसरे चरण के गोंग के विकास के पश्चात व्यक्ति के प्रज्ञावान वासी विकसित होकर विशाल हो चुके होते हैं तथा इधर-उधर घूमने और बात करने में सक्षम हो जाते हैं। कई बार वे नगण्य संख्या में उत्पन्न होते हैं, और कई बार बहुत अधिक संख्या में। वे एक दूसरे से बात कर सकते हैं। उन प्रज्ञावान वासियों में बहुत अधिक मात्रा में शक्ति संचित रहती है, और उसका उपयोग व्यक्ति की बनती को परिवर्तित करने के लिए होता है।
फालुन गोंग साधना में एक विशेष उन्नत स्तर पर कई बार साधक के पूरे शरीर में साधना शिशु (यिंगहाई) प्रकट होते हैं। वे चंचल, हर्षोउल्लास से भरे, तथा दयालु होते हैं। एक दूसरे प्रकार का शरीर, जिसे अमर शिशु (युवान यिंग) कहते हैं, भी उत्पन्न हो सकता है। वह कमल पुष्प के सिंहासन पर बैठता है जो बहुत सुन्दर होता है। साधना द्वारा उत्पन्न अमर शिशु का जन्म मानव शरीर में यिन और यैंग के मिलन से होता है। स्त्री और पुरुष साधक दोनों ही अमर शिशु को संवर्धित करने में सक्षम होते हैं। आरम्भ में अमर शिशु बहुत छोटा होता है वह धीरे-धीरे बड़ा होता है और अंतत: साधक के आकार का हो जाता है। वह बिल्कुल साधक जैसा दिखता है और वास्तव में साधक के शरीर में ही स्थित होता है। जब अलौकिक सिध्दियां प्राप्त लोग उसे देखते हैं, वे कहते हैं कि इस व्यक्ति के दो शरीर हैं। वास्तव में यह व्यक्ति अपना वास्तविक शरीर संवर्धित करने में सफल हो गया है। साधना द्वारा कई धर्म शरीर भी विकसित किए जा सकते हैं। संक्षेप में वे सभी अलौकिक सिध्दियां जो ब्रह्माण्ड में विकसित की जा सकती हैं फालुन गोंग में विकसित की जा सकती हैं; दूसरी साधना पध्दतियों में विकसित अलौकिक सिध्दियां सभी फालुन गोंग में भी सम्मिलित हैं।
(3) पार-त्रिलोक-फा साधना
फालुन गोंग क्रियायें करते रहने से, अभ्यासी अपनी नाड़ियों को चौड़ा तथा और चौड़ा बना सकते हैं, जब तक वे मिल कर एक सार न हो जाएं। इसका अर्थ है कि व्यक्ति ने उस स्तर तक साधना कर ली है जब उसके शरीर में न तो नाड़ियां हैं न ही एक्यूपंक्चर बिंदु या इसके विपरीत नाड़ियां और एक्यूपंक्चर बिंदु सर्वव्यापी हैं। इसका अभी भी यह अर्थ नहीं है कि उसने ताओ प्राप्त कर लिया है - यह फालुन गोंग साधना पध्दति के विकासक्रम में केवल एक प्रकार की अभिव्यक्ति है और एक स्तर का प्रतिबिंब है। इस चरण की प्राप्ति के पश्चात, व्यक्ति त्रिलोक फा साधना अपने अंतिम स्तर पर होता है। जो गोंगउसने विकसित किया है वह बहुत शक्तिशाली होता है और अपनी आकृति निर्धारित कर चुका होता है। साथ ही, इस व्यक्ति का गोंग स्तम्भ अत्यंत ऊंचा होगा और उसके सर के ऊपर तीन पुष्प प्रकट हो चुके होंगे। उस समय उस व्यक्ति ने त्रिलोक फा साधना में केवल अंतिम पग रखा होगा।
जब और आगे पग बढ़ाया जाता है, तो कुछ शेष नहीं रहता। व्यक्ति की सभी अलौकिक सिध्दियां शरीर के सबसे गहरे आयाम में संकुचित कर दी जाएंगी। वह शुध्द-श्वेत शरीर अवस्था में प्रवेश करेगा, जहां शरीर पारदर्शी होता है। एक और पग आगे बढ़ाने पर यह व्यक्ति पार-त्रिलोक-फा साधना में प्रवेश करेगा, जिसे ''बुध्द शरीर की साधना'' भी कहा जाता है। इस स्तर पर विकसित अलौकिक सिध्दियां ईश्वरीय शक्तियों की श्रेणी में आती हैं। इस बिन्दु पर अभ्यासी के पास असीमित शक्तियां होंगी और वह अत्यंत महान होगा। और ऊंचे स्तरों तक पहुंचने पर, वह साधना करने पर एक महान ज्ञान प्राप्त व्यक्ति हो जाएगा। यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि आप अपने शिनशिंग को किस प्रकार संवर्धित करते हैं। जिस किसी स्तर तक आप साधना करते हैं वह आपकी उपलब्धि का स्तर होता है। समर्पित साधक एक सच्चा साधना मार्ग खोजते हैं और सच्ची उपलब्धी प्राप्त करते हैं - यही ज्ञान प्राप्ति है।

[1] फालुन शिउलियन दाफा - धर्म चक्र का महान साधना मार्ग।
[2] ताइची - ताओ विचारधारा के प्रतीक चिन्ह, पश्चिम में ये ''यिन-यैंग'' चिन्ह के नाम से प्रसिध्द हैं।
[3]''तान'' - एक शक्ति पुंज जो आंतरिक क्रिया में कुछ साधकों के शरीर में बनता है; बाह्य क्रिया में इसे ''अमरत्व'' भी कहा जाता है।
[4] चीगोंग पध्दति जो ''तान'' का संवर्धन करती है।
[5] सरीर - कुछ साधकों की चिताग्नी देने के पश्चात बचे विशेष तत्व।
[6] नीवान महल - पिनियल ग्रंथि के लिए एक ताओ कथन।
[7]फूजियान राज्य - चीन के दक्षिण पूर्व में स्थित राज्य
[8] रेन और डू - डू नाडी अथवा ''संचालक वाहिका'' मूलाधार से आरम्भ होती है तथा पीठ के मध्य से होते हुए ऊपर की ओर जाती है। रेन नाडी अथक ''ग्राह्य वाहिका'', मूलाधार से आरम्भ होकर शरीर के अग्रभाग के मध्य से ऊपर की ओर जाती है।
[9]आठ अतिरिक्त शक्ति नाड़ियां - चीनी औषधि में ये वे नाड़ियां हैं जो बारह नियमित नाड़ियों के अतिरिक्त हैं। आठ अतिरिक्त नाड़ियों में से अधिकांश बारह नियमित नाड़ियों से एक्यूपंक्चर बिंदुओं पर काटती हैं, इसलिए इन्हें न तो स्वाधीन और न ही मुख्य माना जाता है।
[10] हुइयिन बिंदु - पेरिनियम के मध्य में स्थित एक्यूपंक्चर बिंदु।
[11] बाईहुइ बिंदु - सर के कपाल (सहस्रार) पर स्थित एक्यूपंक्चर बिंदु।
[12] यिन और यांग - ताओ विचारधारा का मानना है सभी वस्तुओं में यिन और यांग विपरीत शक्तियां उपस्थित होती हैं, जो परस्पर विपरीत किन्तु स्वतन्त्र होती हैं, जैसे स्त्री (यिन) व पुरुष (यांग), शरीर का अग्र भाग (यिन) शरीर के पीछे का भाग (यांग)।
[13] दाफा - 'महान मार्ग', अथवा 'महान धर्म', फालुन गोंग के लिए संक्षिप्त नाम।

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