Sunday, 6 July 2014

ज्ञान की सात भूमिकाएँ .....

1 .. शुभेच्छा -- आत्मकल्याण हेतु श्रोत्रिय एवं ब्रह्मनिष्ठ गुरु के शरणागत होकर उनके उपदेशानुसार शास्त्रो काअध्ययन करके आत्म विचार और आत्मा साक्षात्कार की उत्कृष्ट इच्छा 
2... सुविचारणा - सद्गुरु के उपदेशो तथा मोक्षशास्त्रो का चिन्तन एवं मनन 
3... तनुमानसा - श्रवण , मनन , और निदिध्यासन से शब्दादि विषयो के प्रति जो अनासक्ति होती है एवं सविकल्पसमाधि मे अभ्यास से बुद्धि की जो तनुता - सूक्ष्मता प्राप्त होती है ,वही तनुमानसा है।
4... 
सत्वापत्ति - उपर्युक्त तीन से साक्षात्कार पर्यन्त स्थिति अर्थात् निर्विकल्प समाधिरुप स्थिति ही सत्वापत्ति है  ज्ञानकी चौथी भूमिका वाला पुरुष ब्रह्मविद कहलाता है 
5 ... 
असंसक्ति -चित्त-विषयक परमानन्द और नित्य अपरोक्ष ऐसी ब्रह्मात्म भावना का साक्षात्कार रुप चमत्कारअसंसक्ति है  इसमेँ अविद्या तथा उसकेकार्यो का सम्बन्ध नहीँ होता 
6 .. 
पदार्थभाविनी - पदार्थो की दृढ अप्रतीति होती है वह पदार्थभाविनी है 
7 .. 
तुर्यगा - तीनो अवस्था से मुक्त होना तुर्यगा है  ब्रह्म को जिस अवस्था मेँ आत्मरुप और अखण्ड जाने वहीअवस्था तुर्यगा है 
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प्रथम तीन भूमिकाएँ साधनकोटि की है , और अन्य चार ज्ञानकोटि की है ..
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तीन भूमिकाओ तक सगुण ब्रह्म का चिन्तन करो ..
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ज्ञान की पाँचवी भूमिका तक पहुँचने पर जड चेतन की ग्रन्थि छूट जाती है और आत्मा का अनुभव होने
लगता है .
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आत्मा शरीर से भिन्न है ..
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इन भूमिकाओ मेँ उत्तरोत्तर देहभान भूलता हुआ उन्मत्त दशा प्राप्त होती है ..

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