मुनि की रेती | Muni Ki Reti
मुनि की रेती पावन गंगा नदी के किनारे हिमालय की तलहटी में स्थित है. यह स्थान एक आध्यात्मिक केन्द्र भी रहा है जहाँ अनेक मंदिर एवं आश्रम स्थित हैं यह पवित्र धाम कभी चार धाम यात्रा का प्रवेश द्वारा माना जाता था. मुनि की रेती भारत के योग तथा अध्यात्म दर्शन का प्रमुख स्थल है जहाँ भारत के कोने कोने से लोग ज्ञान पाने की चाह में यहाँ आते हैं.
यह स्थान भारत का प्रमुख योग केन्द्र भी है जहाँ पर विश्व भर से लोग योग सिखाने आते हैं. प्राचीन मंदिरों, पवित्र पौराणिक का बहुत गहरा संबंध रहा है इस स्थान से. यह स्थान ऋषि मुनीयों की तपोस्थली रहा जहाँ पर भगवान श्री राम जी का आगमन हुआ पवित्र गंगा नदी के तट पर स्थित यह स्थान आध्यात्मिक शांति का ऎहसास कराता है. स्थानीय आकर्षणों से घिरा यह स्थान एक ऐतिहासिक धार्मिक स्थल है.
उत्तराखंड का यह पवित्र ऐतिहासिक स्थल विश्व के मानचित्र पर अपनी छाप छोड़ता प्रतीत होता है. मुनी की रेती परंपरागत रुप से चार धाम यात्रा का शुरुवाती रूप था जहाँ पर यात्रा आरंभ करने से पहले सभी भक्त लोग एकत्रित हुआ करते थे. परंतु जब से यहाँ का विकास हुआ तब से इस स्थान का यह रूप कम होता गया लेकिन इसका अर्थ यह नहीं की इस स्थान ने अपना महत्व खो दिया हो.
वर्तमान में मुनी की रेती ओर भी ज्यादा विस्तृत होकर सामने आया है. यहां का शत्रुघ्न मंदिर एक प्राचीन व प्रसिद्ध स्थान है पहले चार धाम की यात्रा में जाने वाले सभी लोग यहां आकर सुरक्षित यात्रा की कामना किया करते थे कुछ जानकारों का मत है की इस मंदिर की स्थापना आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा की गई थी.
मुनि की रेती पौराणिक महत्व | Muni Ki Reti Mythological Importance
मुनि की रेती को रामायण काल से जोड़ कर देखा जाता है. इस स्थान व इसके आस-पास का क्षेत्र अनेक धार्मिक संदर्भों से जुडा़ हुआ है. यहाँ पर स्थित कई मंदिर व स्थान रामायण के पात्रों के नामों से भी संबोधित किए जाते हैं. इस क्षेत्र के विषय में धार्मिक कथाओं से ज्ञात होता है कि जब भगवान श्री राम ने लंका विजय के पश्चात वनवास समाप्त करके अयोध्या लौट जाते हैं.
वर्षो तक शासन करने के उपरांत श्री राम अपना सभी कुछ अपने उत्तराधिकारियों में बाँट कर अपने अंतिम दिनों में तपस्या के लिए उत्तराखंड की ओर गमन करते हैं. यहाँ उनके साथ उनके भाई व गुरु वशिष्ठ भी आते हैं तथा उनके साथ अन्य ऋषि मुनि भी साथ में चल पडते हैं. कहा जाता है कि उस समय यहाँ पर कोई नहीं था व उन लोगों का स्वागत यहाँ की रेत ने किया जिस कारण इस क्षेत्र का नाम मुनि की रेती कहलाने लगा.
एक अन्य मान्यता अनुसार रैम्या मुनि ने इस स्थान पर मौन धारण करके कठोर तपस्या की थी. उनकी मौन साधना ने इस स्थान को मौन की रेती का नाम दिया तथा वर्तमान में यह स्थान मुनि की रेती कहा जाने लगा. मुनि की रेती प्राचीन समय से ही ज्ञान का एक केन्द्र रहा है. संपूर्ण भारत से लोग यहाँ ज्ञान प्राप्ति साधना एवं चार धाम यात्रा करने के लिए यहाँ आते रहे हैं.
मुनि की रेती महत्व | Muni Ki Reti Importance
मुनि की रेती की प्राकृतिक सुंदरता तथा इसका धार्मिक व ऎतिहासिक स्वरूप इसे महत्वपूर्ण बनाता है. इसके आस पास अनेक आकर्षण केन्द्र हैं जिसमें गरुड़ चट्टी जलप्रपात, गरुड़ मंदिर, कुंजादेवी मंदिर है, नीलकंठ महादेव मंदिर तथा लक्ष्मण झूला इत्यादि प्रसिद्ध स्थान हैं यहाँ पर अनेक उत्सवों का आयोजन भी किया जाता है.
यहाँ पर पुरी की प्रसिद्व जगन्नाथ रथ यात्रा का लघुरुप मनाया जाता है. जिसे देखने के लिए भक्तों की भारी भीड़ जुटती है. इसके साथ ही मुनी की रेती योग साधना तथा साहसिक खेलकुदों का केन्द्र भी हैं जहाँ पर लोग रोमांचक अनुभवों को पाते हैं. इतिहास के सभी रूपों में मुनि की रेती का योगदान रहा है जिस कारण यह ज्ञान का केन्द्र रहा है.
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