Saturday, 19 July 2014

नीज स्वरुप

परमात्मा का स्वरूप क्या है और उसको पहचानने के उपाय क्या है?

प्रश्न तो उपासना करने पर ही समझ में आता है तथा गोपनीय भी है फिर भी जो मैं समझ सका हूँ वह यह है कि मूल रूप से नीज ( स्वयं ) का ही विशाल स्वरुप है। नीज दो नहीं हो सकते है नीज नित्य विद्यमान रहता है। वही प्रकृति के साथ मिलकर रुपमय हो जाता है तथा प्रकृति से हटकर अरुप हो जाता है।

चरम सत्य की बात तो ये है कि वह द्वैत भी नहीं हैअद्वैत भी नहीं है, सत्य व असत्य भी नहीं है और उसका कोई विकल्प नहीं है वह विश्वात्मक ( सारे संसार की आत्मा ) भी है और विश्वातित ( सारे विश्व से अलग ) भी है साथ में दोनों से रहित भी है। सब में वही है तथा उसी में सब ! कुछ नहीं होते हुए भी सब कुछ वहीं है। यही सच्चिदानंद का स्वरूप है।

महासत्ता में महंत्तता ( अहंकार ) से सहसा एक स्पंदन उठता है उसके उठने पर भी महासत्ता ज्यौं की त्यौं बनी रहती है। स्पंदन का उठना ही प्रणव ( ॐ ) का उल्लास हैं । इसी परब्रह्म सत्ता से शब्द ब्रह्म उत्पन्न हुआ। परब्रह्म के स्वरुप का संधान ( घर्षण ) महामाया में समत्व का उन्मेष उत्पन्न होता है इसी से ज्ञान का साक्षात्कार होता है तथा महामाया के उन्मेष ( स्पंदन ) से अनेक ज्ञान की शाखाएँ निकलती हैं।

प्रणव उल्लास से स्वयं प्रकाश बोध होता है और चित् सत् की अभिव्यक्ति माया में स्थित है इसका बोध भी है और चित् का माया से अलग होने पर सत्य का बोध होता है। तब चित् और सत् दोनों से ही नेगेटिव व पाजिटीव दोनों ही प्रकाश फट पड़ते है तथा दोनों मिलकर आनंद स्वरूप में परिणत हो जाते हैं। महामाया प्रणव की अर्द्धमात्रा ( बिंदु,हूं ( हूंकार )) ही है। महामाया शरीर प्रणव बीज नाद द्वारा अभिव्यक्त है तथा महामाया का ज्ञान या महामाया का भ्रूण अहंब्रह्मास्मी हैं ।

जिस समय ज्ञान हट जाता है, स्वभान बोध समाप्त हो जाता है और वही ब्रह्म,जीव शरीर भाव में आ जाता है और शरीर रहेगा तो अभिमान रहेगा। माया व महामाया से परे ही नित्य की अवस्था होती है।

"एकाग्रता" ये मन की एक मात्रा है तथा उनमना अवस्था ( व्याकुलता ) में प्रवेश होने के लिए करुणा भाव की आवश्यकता होती है। जब तक दीन व करुणा भाव नहीं होगा तब तक इस ओर जाना कठिन है। महामाया का शुद्ध रूप, विराट स्वरुप विश्व है। माया इसका मलीन रुप है और व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक होता है जब उनमना ( र्निविकल्प,निरहीन ) भूमि में प्रवेश होकर नीज स्वरुप को शिवोsहम् भाव में स्थापित करें तो ये सारी चीजें सहज में ही बोध हो जाएगी।

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