Tuesday, 1 July 2014

यमुनोत्री धाम | Yamunotri Dham | Importance of Yamunotri Dham

यमुनोत्री हिमालय के पश्चिम में ऊँचाई पर स्थित है. यमुनोत्री को सूर्यपुत्री के नाम से भी जाना जाता है. और यमुनोत्री से कुछ किलोमीटर की दूरी पर कालिंदी पर्वत स्थित है. जो अधिक ऊँचाई पर होने के कारण दुर्गम स्थल भी है. यही वह स्थान है जहां से यमुना एक संकरी झील रूप में निकलती है. यह यमुना का उद्गम-स्थल माना जाता है. यहां पर यमुना अपने शुरूवाती रूप मे यानी के शैशव रूप में होती है यहां का जल शुद्ध एवं स्वच्छ तथा सफेद बर्फ की भांती शीतल होता है.

यमुनोत्री मंदिर | Yamunotri Temple

यमुनोत्री मंदिर का निर्माण टिहरी के राजा महाराजा प्रतापशाह ने बनवाया थान मंदिर में काला संगमरमर है. यमुनोत्री मंदिर के कपाट अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर खोले जाते हैं व कार्तिक के महीने में यम द्वितीया के दिन बंद कर दिए जाते हैं,
सर्दियों के समय यह कपाट बंद हो जाते हैं क्योंकी बर्फ बारी की वजह से यहां पर काम काज ठप हो जाता है. और यात्रा करना मना होता है शीतकाल के छ: महीनों के लिए खरसाली के पंडित मां यमुनोत्री को अपने गांव ले जाते हैं पूरे विधि विधान के साथ मां यमुनोत्री की पूजा अपने गांव में ही करते हैं. इस मंदिर में गंगा जी की भी मूर्ति सुशोभित है तथा गंगा एवं यमुनोत्री जी दोनो की ही पूजा का विधान है.

यमुनोत्री स्वरूप | Yamunotri Shape

यमुनोत्री मंदिर के प्रांगण में विशाल शिला स्तम्भ खडा़ है जो दिखने मे बहुत ही अदभुत सा प्रतित होता है. इसे दिव्यशिला के नाम से जाना जाता है. यमुनोत्री मंदिर बहुत उँचाई पर स्थित है इसके बावजूद भी यहां पर तीर्थयात्रियों एवं श्रद्धालुओं का अपार समूह देखा जा सकता है. मां यमुना की तीर्थस्थली गढवाल हिमालय के पश्चिमी भाग में यमुना नदी के स्त्रोत पर स्थित है.
यमुनोत्री का वास्तविक रूप में बर्फ की जमी हुई एक झील हिमनद है. यह समुद्र तल से 4421 मीटर की ऊँचाई पर कालिंद नामक पर्वत पर स्थित है. और इस स्थान से आगे जाना संभव नही है क्योकि यहां का मार्ग अत्यधिक दुर्गम है इसी वजह से देवी यमुनोत्री का मंदिर पहाड़ के तल पर स्थित है. संकरी एवं पतली सी धारा युमना जी का जल बहुत ही शीतल, परिशुद्ध एवं पवित्र  होता है और मां यमुना के इस रूप को देखकर भक्तों के हृदय में यमुनोत्री के प्रति अगाध श्रद्धा और भक्ति उमड पड़ती है.

यमुनोत्री पौराणिक संदर्भ | Yamunotri Mthological Reference

यमुनोत्री के बारे मे वेदों, उपनिषदों और विभिन्न पौराणिक आख्यानों में विस्तार से वर्णन किया गया है. देवी के महत्व और उनके प्रताप का उल्लेख प्राप्त होता है. पुराणों में यमुनोत्री के साथ असित ऋषि की कथा जुड़ी हुई है कहा जाता है की वृद्धावस्था के कारण ऋषि कुण्ड में स्नान करने के लिए नहीं जा सके तो उनकी श्रद्धा देखकर यमुना उनकी कुटिया मे ही प्रकट हो गई. इसी स्थान को यमुनोत्री कहा जाता है. कालिन्द पर्वत से निकलने के कारण इसे कालिन्दी भी कहते हैं.

यमनोत्री धाम कथा | Yamunotri Dham Katha in Hindi

एक अन्य कथा के अनुसार सूर्य की पत्नी छाया से यमुना व यमराज पैदा हुए यमुना नदी के रूप मे पृथ्वी मे बहने लगीं और यम को मृत्यु लोक मिला कहा जाता है की जो भी कोई मां यमुना के जल मे स्नान करता है वह आकाल म्रत्यु के भय से मुक्त होता है और मोक्ष को प्राप्त करता है. किदवंति है की यमुना ने अपने भाई से भाईदूज के अवसर पर वरदान मांगा कि इस दिन जो यमुना स्नान करे उसे यमलोक न जाना पड़े इस अत: इस दिन यमुना तट पर यम की पूजा करने का विधान भी है.

सप्तर्षि कुण्ड | Saptrishi Kund

यमुनोत्री में स्थित ग्लेशियर और गर्म पानी के कुण्ड सभी के आकर्षण का केन्द्र है. यमुनोत्री नदी के उद्गम स्थल के पास ही महत्वपूर्ण जल के स्रोत हैं सप्तर्षि कुंड एवं सप्त सरोवर यह प्राकृतिक रुप से जल से परिपूर्ण होते हैं. यमुनोत्री का प्रमुख आकर्षण वहां गर्म जल के कुंड होना भी है. यहां पर आने वाले तीर्थयात्रीयों एवं श्रद्धालूओं के लिए इन गर्म जल के कुण्डों में स्नान करना बहुत महत्व रखता है यहां हनुमान, परशुराम, काली और एकादश रुद्र आदि के मन्दिर है.

सूर्य कुंड | Surya Kund

मंदिर के निकट पहाड़ की चट्टान के भीतर गर्म पानी का कुंड है जिसे सूर्य कुंड के नाम से जाना जाता है. यह एक प्रमुख स्थल है यहां का जल इतना अधिक गरम होता है कि इसमें चावल से भरी पोटली डालने पर वह पक जाते हैं और यह उबले हुए चावल प्रसाद के रुप में तीर्थयत्रीयों में बांटे जाते हैं तथा इस प्रसाद को श्रद्धालुजन अपने साथ ले जाते हैं.

गौरी कुंड | Gauri Kund

गौरी कुंड भी महत्वपूर्ण स्थल है यहां का जल का जल अधिक गर्म नहीं होता अत: इसी जल में तीर्थयात्री स्नान करते हैं यह प्रकृति के एक अदभुत नजारे हैं. सभी यात्री स्नान के बाद सूर्य कुंड के पास स्थित दिव्य-शिला की पूजा-अर्चना करते हैं और उसके बाद यमुना नदी की पूजा की जाती है जिसका विशेष महत्व है. इसके नजदीक ही तप्तकुंड भी है परंपरा अनुसार इसमें स्नान के बाद श्रद्धालु यमुना में डुबकी लगाते हैं.
यमुनोत्री के धार्मिक महत्व के साथ ही मनमोहक प्राकृतिक सौंदर्य के कारण यह प्रकृति की अदभूत भेंट है. यमुनोत्री चढ़ाई  मार्ग वास्तविक रूप में दुर्गम और रोमांचित करनेवाला है. मार्ग में स्थित गगनचुंबी, बर्फीली चोटियां सभी यात्रियों को सम्मोहित कर देती हैं.
इसके आस-पास  देवदार और चीड़ के हरे-भरे घने जंगल ओर चारों तरफ फैला कोहरा एवं  घने जंगलो की हरियाली मन को मोहने वाली है. और पहाड़ों के बीच बहती हुई यमुना नदी की शीतल धारा मन को मोह लेती है यह वातावरण सुख व आध्यात्मिक अनुभूति देने वाला एवं नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण है. भारतीय  संस्कृति में यमुनोत्री को माता का रूप माना गया है यह नदी भारतीय सभ्यता को महत्वपूर्ण आयाम देती है.

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