जीव को कैसे पता लगें की वह परमात्मा के नजदीक जा रहा है?
ईश्वर की प्रतिष्ठा मनुष्य अपने मानसिक स्तर पर करता है। जो जितने द्ढ़ विश्वास से ईश्वर को अंदर प्रतिष्ठितकरता है। वो उतना ही शक्तिमान होता चला जाता है तथा उसकी दृष्टि निर्मल होती चली जाती है। मल हट जाताहै तथा दिव्य दृष्टि के प्राप्त होने पर विराट स्वरुप का अनुभव होता है। समभाव आने पर परमात्मा के चर्तभुज रुपके दर्शन होते है। मूल रूप से एक के सिवा दुसरा कोई है ही नहीं। माया,महामाया,योग शक्ति के कारण भेद उत्पन्नहुए है इसी कारण ये जीव अज्ञान में उलझकर भेद समझने लग जाता है और भेद के कारण ही 84 लाख योनियोंबनी है और भेद के कारण ही भय बना है, भय के कारण ही सुख दुख का अनुभव होता है। शक्ति के स्वरुप कासमाधान अब तक विज्ञान भी नहीं कर पाया है।
शक्ति असीम विराट की व्यवस्था है। साधारण तौर पर जीव की इच्छा शक्ति के कारण ही सारा क्रिया कलापहो रहा है तथा इसी के कारण मैं व तू का भेद है मैं शुद्ध अहंकार है तू में करुणा जुड़ी हुई होती है। ( शुद्ध अहंकार+ करुणा ) मैं व तू दोनों एक हो जाने पर असीम सत्ता का अनुभव होने लगता है। आत्मा की स्वरुपा स्थिति कोही मोक्ष कहते है। जब तक मनुष्य स्वरुपा स्थिति को प्राप्त नहीं करेगा तब तक शुभ अशुभ कर्म करता रहेगा तथाउसमें आसक्ति होने के कारण सुख दुख रुपी फल का बाध्य होकर भोग भोगेगा । आत्मा का पूर्ण तत्व ही ब्रह्मभाव है जो कि अंतरमुखी व्यवस्था होने पर प्राप्त होती है। जो कि या तो भगवत् अनुग्रह या गुरु कृपा ( शक्तिपात )से ही संभव है ।
अज्ञान से संसार चलता है और अज्ञान की निवृत्ति पर ही जीव शक्ति संपन्न हो जाता है। ये हमेशा यादरखना चाहिए कि कर्म ही कर्म के अधीन है कर्म से ही शरीर चलता है। कर्म प्रकृति की प्रवृत्ति है। जिस समय देहकर्म नहीं करेगी उसी समय शरीर गिर जाएगा।
ईश्वर या गुरु की कृपा का अर्थ मन व बुद्धि पर से तीनों गुणों का आवरण हट जाता है तब जीव का बंधनभाव समाप्त हो जाता है। उस समय परमेश्वर नित्य,निर्मल व सर्वज्ञ आभासित होने लगता है। जीव को तमोगुणरुपी शक्ति हमेशा बांधें रहती है। वही सबसे अधिक उसके उद्धार के लिए बाधक है। इस मल उद्धार के लिएशब्दात्मक पवित्र नाम जपा जा सकता है। इससे मल का उद्धार धीमी गति से होता है। दान से भी मल का उद्धारहोता है पर अहंकार नहीं आना चाहिए। ध्यान से भी मल का उद्धार कुछ तीव्र गति से होने लगता है। जब मल काउद्धार होने लगता है तो दोनों बोहों के मध्य प्रकाश दिखाई देने लगता है और यदि संपूर्ण मल का उद्धार हो जाएं तोकण-कण में वह अनुभव होने लगता हैं।
ईश्वर की प्रतिष्ठा मनुष्य अपने मानसिक स्तर पर करता है। जो जितने द्ढ़ विश्वास से ईश्वर को अंदर प्रतिष्ठितकरता है। वो उतना ही शक्तिमान होता चला जाता है तथा उसकी दृष्टि निर्मल होती चली जाती है। मल हट जाताहै तथा दिव्य दृष्टि के प्राप्त होने पर विराट स्वरुप का अनुभव होता है। समभाव आने पर परमात्मा के चर्तभुज रुपके दर्शन होते है। मूल रूप से एक के सिवा दुसरा कोई है ही नहीं। माया,महामाया,योग शक्ति के कारण भेद उत्पन्नहुए है इसी कारण ये जीव अज्ञान में उलझकर भेद समझने लग जाता है और भेद के कारण ही 84 लाख योनियोंबनी है और भेद के कारण ही भय बना है, भय के कारण ही सुख दुख का अनुभव होता है। शक्ति के स्वरुप कासमाधान अब तक विज्ञान भी नहीं कर पाया है।
शक्ति असीम विराट की व्यवस्था है। साधारण तौर पर जीव की इच्छा शक्ति के कारण ही सारा क्रिया कलापहो रहा है तथा इसी के कारण मैं व तू का भेद है मैं शुद्ध अहंकार है तू में करुणा जुड़ी हुई होती है। ( शुद्ध अहंकार+ करुणा ) मैं व तू दोनों एक हो जाने पर असीम सत्ता का अनुभव होने लगता है। आत्मा की स्वरुपा स्थिति कोही मोक्ष कहते है। जब तक मनुष्य स्वरुपा स्थिति को प्राप्त नहीं करेगा तब तक शुभ अशुभ कर्म करता रहेगा तथाउसमें आसक्ति होने के कारण सुख दुख रुपी फल का बाध्य होकर भोग भोगेगा । आत्मा का पूर्ण तत्व ही ब्रह्मभाव है जो कि अंतरमुखी व्यवस्था होने पर प्राप्त होती है। जो कि या तो भगवत् अनुग्रह या गुरु कृपा ( शक्तिपात )से ही संभव है ।
अज्ञान से संसार चलता है और अज्ञान की निवृत्ति पर ही जीव शक्ति संपन्न हो जाता है। ये हमेशा यादरखना चाहिए कि कर्म ही कर्म के अधीन है कर्म से ही शरीर चलता है। कर्म प्रकृति की प्रवृत्ति है। जिस समय देहकर्म नहीं करेगी उसी समय शरीर गिर जाएगा।
ईश्वर या गुरु की कृपा का अर्थ मन व बुद्धि पर से तीनों गुणों का आवरण हट जाता है तब जीव का बंधनभाव समाप्त हो जाता है। उस समय परमेश्वर नित्य,निर्मल व सर्वज्ञ आभासित होने लगता है। जीव को तमोगुणरुपी शक्ति हमेशा बांधें रहती है। वही सबसे अधिक उसके उद्धार के लिए बाधक है। इस मल उद्धार के लिएशब्दात्मक पवित्र नाम जपा जा सकता है। इससे मल का उद्धार धीमी गति से होता है। दान से भी मल का उद्धारहोता है पर अहंकार नहीं आना चाहिए। ध्यान से भी मल का उद्धार कुछ तीव्र गति से होने लगता है। जब मल काउद्धार होने लगता है तो दोनों बोहों के मध्य प्रकाश दिखाई देने लगता है और यदि संपूर्ण मल का उद्धार हो जाएं तोकण-कण में वह अनुभव होने लगता हैं।
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